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( त्कारी प्रश्नों का व्याकरण जिस सूत्र में वर्णित है, वह प्रश्नव्याकरण है । १७ वर्तमान में उप लब्ध प्रश्न व्याकरण में तो ऐसी कोई चर्चा नहीं है । अतः यहाँ प्रश्न व्याकरण का यदि सामान्यतः विचार चर्चा रूप 'जिज्ञासा' १८ अर्थ किया जाए तो ठीक है । अहिंसाहिंसा एवं सत्य-असत्य आदि धर्माधर्मरूप विषयों की चर्चा जिस सूत्र में है, वह प्रश्न व्याकरण है । इस दृष्टि से वर्तमान में उपलब्ध 'प्रश्न व्याकरण' का नाम भी सार्थक हो सकता है ।
प्राचीन प्रश्न व्याकरण एक महान् विराटकाय अंग सूत्र था । उसके पदों की गणना लाखों की संख्या में थी । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार प्रश्न व्याकरण के ९२ लाख १६ हजार पद होते हैं ।" दिगम्बर परम्परा पदों की संख्या ६३ लाख १६
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६) पण्हावागरणेसु णं अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई, अद्वागपसिणाई, अन्ने वि विचित्ता विज्जाइसया, नागसुवर्णोह सद्ध दिव्या संवाया आघविज्जति ।
- नन्दी सूत्र, श्रुतज्ञान प्रकरण (ख) अद्वागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खोम - आइच्च मासियाणं, विविहमहापसिणविज्जा-मणपसिणविज्जा-देवयपयोगपहाणगुणप्पगासियाणं सब्भूयवगुणप्पभावनरगणमइविम्हय कराणं ।
- समवायांग सूत्र, सूत्र १४५ (ग) या पुनवद्या मंत्रा वा विधिना जप्यमानाः पृष्टा एव शुभाशुभं कथयन्ति । - नन्दी सूत्र, मलयगिरिवृत्ति (घ) जागा सुवण्णा अण्णे य भवणवासिणो ते विज्जामंतागरिसित्ता आगता साधुणा सह संवदंति - जल्पं करेंति ।
नन्दी चूर्णि (ङ) अन्ये विद्यातिशयाः स्तम्भ - स्तोभ-वशीकरण- विद्वेषी करणोच्चाटनादयः । - समवायांगवृत्ति
(च) प्रश्नविद्या यकाभिः क्षौमकादिषु देवतावतारः क्रियते । — स्थानांग, अभयदेवीयावृत्ति १० स्थान
१८ - प्रश्नः प्रतीतः तद्विषयं निर्वचनं व्याकरणम् ।
१६ --- (क) पदग्गं दोणउतिलक्खा सोलस य सहस्सा । (ख) द्विनवतिर्लक्षाणि षोडश च सहस्राणि ।
- नन्दी सूत्र, मलयगिरिवृत्ति
- नन्दी चूर्णि —समवायांगवृत्ति