Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ ( १० ) (४) समवाय (समवाय) (५) विया (वा) हपन्नत्ति (व्याख्या प्रज्ञप्ति) व्याख्या प्रज्ञप्ति के लिए अपर नाम 'भगवती' भी प्रचलित है। (६) नाया धम्मकहा (ज्ञाता (त) धर्मकथा) (७) उवासगदसा (उपासक दशा) (८) अंतगडदशा (अन्तकृद् (त) दशा) (8) अनुत्तरोववाइयदसा (अनुत्तरोपपातिकदशा) (१०) पण्हावागरणाइं (प्रश्नव्याकरणानि) (११) विवागसुय (विपाक सूत्र) (१२) दिठिवाय (दृष्टिवाद या दृष्टिपात) दृष्टिवाद के लिए तत्त्वार्थभाष्य में 'दृष्टिपात' शब्द का प्रयोग किया गया है ।१० प्राकृत 'दिट्ठिवाओ' के दृष्टिवाद तथा दृष्टिपात—दोनों ही संस्कृत रूप हो सकते हैं । दृष्टिवाद के परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका रूप पांच प्रकारों में से पूर्वगत प्रकार में उत्पाद आदि चौदह पूर्व सम्मिलत हैं । दृष्टिवाद अंग (पूर्वगत) भगवान् महावीर से १००० वर्ष बाद विच्छिन्न हो गया ।११ प्रथमतः आवश्यक तथा आवश्यक व्यक्तिरिक्त के रूप में अंगबाह्य श्रुत विभक्त है'२ और आवश्यक व्यक्तिरिक्त औपपातिक, राजप्रश्नीय, प्रज्ञापना आदि तथा निशीथ व्यवहार, उत्तराध्ययन, दशवैका लिक आदि तथा अन्य अनेक प्रकीर्णक सूत्रों के रूप . में वर्णित है। अंग प्रविष्ट और अंगबाह्य रूप सभी आगमों के प्राचीन रूपों में काल वैषम्य के कारण काफी परिवर्तन हुआ है । कुछ घटा भी है, कुछ बढ़ा भी है। स्थानांग, समवायांग और नन्दी सूत्र आदि में आगमों के अध्ययन एवं विषय आदि का जो निरू १० दृष्टिपातः। -तत्त्वार्थ स्वोपज्ञ भाष्य ११२० ११–(क) एगं वाससहस्सं पुव्वगए अणुसिज्जिस्सइ। ---भगवती २०१८ (ख) वोलीणम्मि सहस्से, वरिसाण वीरमोक्खगमणाओ। उत्तरवायगवसभे, पुव्वगयस्स भवे छेदो ॥८०१॥ -तित्थोगाली १२ - अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-आवस्सयं च आवस्सयवइरित्त च।। -नन्दी सूत्र, श्रुतज्ञान प्रकरण १३–नन्दी सूत्र, श्रुतज्ञान प्रकरण

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 940