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(xvii) आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा ही रची गई है। टीका अत्यन्त सरल एवं सुबोध संस्कृत में लिखी गयी है। इसकी हिन्दी टीका पण्डित पन्नालालजी साहित्याचार्य ने की है। इस ग्रन्थ में 150 संस्कृत श्लोक हैं। सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान एवं सम्यक्-चरित्र का वर्णन श्रावकों के हितार्थ रचा गया है। ग्रन्थ में सत्तर अतीचारों तथा श्रावक के संयम विकास की ग्यारह प्रतिमाओं की भी सुगम व्याख्या की गई है। 11. समाधितन्त्र टीका
यह मूल ग्रन्थ संस्कृत भाषा में 105 श्लोकों में निबद्ध है। इसके मूलकर्ता आचार्य पूज्यपाद हैं जिनका अपर नाम देवनन्दि है। इसकी सुगम टीका आचार्य प्रभाचन्द्र ने की है। सारे छन्द वैराग्यपूर्ण एवं आत्मा-विषयक हैं। बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा का स्वरूप भी आगम-सम्मत है। टीका सरल संस्कृत गद्यात्मक है। 12. आत्मानुशासन टीका
इसके मूलकर्ता आचार्य गुणभद्र हैं। इन्होंने महापुराण और जयधवला का अधूरा काम पूरा किया। ये आचार्य जिनसेन के पट्ट शिष्य थे। आत्मानुशासन संस्कृत भाषा में शार्दुलविक्रीडित, वसन्ततिलका, पृथ्वी, अनुष्टुप, आर्या आदि विभिन्न छन्दों में रचा गया है। अध्यात्म-प्रेमी होने से आचार्य प्रभाचन्द्र ने अध्यात्म ग्रन्थों की भी टीका की है।
13. शाकटायन न्यास ___मुनि शाकटायन एक विश्रुत जैन वैयाकरण हुए हैं। ग्रन्थकर्ता ने पाणिनी और जैनेन्द्र व्याकरण के अनुरूप ही 3200 सूत्र-प्रमाण व्याकरण की रचना की है। इसी पर आचार्य प्रभाचन्द्र ने सरल एवं सुगम न्यास लिखा है। न्यास एक प्रकार की टीका ही है। 14. क्रियाकलाप
यह ग्रन्थ एक संकलित रचना है। इसे पण्डित पन्नालालजी सोनी शास्त्री ने संकलित किया है। इसमें सिद्ध भक्ति, आचार्य भक्ति आदि भक्तियों, सामायिक पाठ तथा साधु एवं श्रावकों के करने योग्य क्रियाओं