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(xiv) वचनिका में प्रत्यभिज्ञान के सब उदाहरण एक ही सूत्र संख्या 6 में दिये गये हैं। इस प्रकार तृतीय परिच्छेद के 101 सूत्रों की संख्या 97 होने में कोई आपत्तिजनक बात नहीं है। संभवत: पहले ऐसा ही रहा है। __ परीक्षामुख तथा प्रमेयकमलमार्तण्ड में परिच्छेदों की संख्या 6 है। फिर भी प्रमेयकमलमार्तण्ड में परिच्छेदों के विषय विभाजन में अन्तर किया गया है। परीक्षामुख में प्रथम परिच्छेद प्रमाण परिच्छेद है, द्वितीय परिच्छेद प्रत्यक्ष परिच्छेद है, तृतीय परिच्छेद परोक्ष परिच्छेद है, चतुर्थ परिच्छेद विषय परिच्छेद है, पंचम परिच्छेद फल परिच्छेद है और षष्ठ परिच्छेद तदाभास (प्रमाणाभास आदि) परिच्छेद है।
प्रमेयकमलमार्तण्ड में तृतीय परिच्छेद तक तो परीक्षामुख के समान ही परिच्छेदों का विषय विभाजन है। किन्तु प्रमेयकमलमार्तण्ड में चतुर्थ
और पंचम परिच्छेदों को एक में मिलाकर चतुर्थ परिच्छेद बनाया गया है। तथा परीक्षामुख के छठवें परिच्छेद को तोड़कर पंचम और षष्ठ ये दो परिच्छेद बनाये गये हैं। पाँचवें परिच्छेद में परीक्षामुख के षष्ठ परिच्छेद के 73 सूत्रों को सम्मिलित कर तदाभास परिच्छेद नामक पंचम परिच्छेद बनाया है। और परीक्षामुख के षष्ठ परिच्छेद के केवल अन्तिम सूत्र
सम्भवदन्यद्विचारणीयम्। का एक छठवाँ परिच्छेद बनाया है तथा इस परिच्छेद का कोई नाम भी नहीं दिया है।
इन सभी परिवर्तनों पर विचार करें तो यह लगता है कि आचार्य प्रभाचन्द्र सूत्रों की टीका के सहारे दर्शन जगत् को बहुत कुछ देना चाहते हैं; किन्तु इस प्रयास में टीका इतनी अधिक विस्तृत हो रही है कि कहीं कहीं वे टीकानुसार ही मूल ग्रन्थ के क्रम को व्यवस्थित कर रहे हैं। इसकी पृष्ठभूमि में मुझे तो यही आशय नज़र आता है। हम इसे आचार्य प्रभाचन्द्र का वैशिष्ट्य कह सकते हैं।
प्रमेयकमलमार्तण्ड की विशेषता है कि वह प्रमाण की कोटि में आने वाले जितने भी ज्ञेय पदार्थ हैं उनको कमलों की भाँति प्रकाशित