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(xii ) की यह विस्तृत, विशद एवं पाण्डित्यपूर्ण टीका 'परीक्षामुख' को अलंकृत करने वाली है, इसलिए इस कृति का अपर नाम 'परीक्षामुखालंकार' भी है। यह बारह हजार श्लोक प्रमाण महाभाष्य है।
लघु अनन्तवीर्य ने 'परीक्षामुखसूत्र' पर ही 'प्रमेयरत्नमाला' नाम की एक टीका लिखी है जिसमें उन्होंने लिखा है
प्रभेन्दुवचनोदारचन्द्रिका प्रसरे सति। मादृशाः क्व नु गण्यन्ते ज्योतिरिङ्गणसन्निभाः॥
-प्रमेयरत्नमाला यहाँ लघु अनन्तवीर्य ने प्रमेयकमलमार्तण्ड को उदार-चन्द्रिका (चाँदनी) की उपमा दी है और स्वयं की रचना प्रमेयरत्नमाला को प्रमेयकमलमार्तण्ड के सामने खद्योत (जुगनू) के समान बतलाया है।
प्रमेयकमलमार्तण्ड की संपूर्ण टीका के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आचार्य प्रभाचन्द्र को सम्पूर्ण जैनागम और जैनदर्शन का तलस्पर्शी ज्ञान तो था ही, साथ ही उन्होंने टीका में जो वेद, उपनिषद, पुराण, महाभारत, भगवद्गीता, स्मृतियाँ, वाक्यपदीय, काव्यालंकार, शिशुपालवध महाकाव्य, वाणभट्ट की कादम्बरी और बौद्धाचार्य अश्वघोष के सौन्दरनन्द महाकाव्य आदि के उद्धरण दिये हैं उससे ज्ञात होता है कि उनका अध्ययन और वैदुष्य कितना व्यापक, विशाल और गम्भीर था। मूलग्रन्थ और टीका में अन्तर
मूलग्रन्थ परीक्षामुखसूत्र की तुलना में प्रमेयकमलमार्तण्ड टीका में सूत्र संख्या और परिच्छेद विभाजन आदि में मामूली परिवर्तन दिखलायी देता है जिसका उल्लेख डॉ. उदयचन्द जी ने 'प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन' में किया है।
वर्तमान में परीक्षामुख के सूत्रों का जो पाठ प्रचलित है उसमें सूत्रों की कुल संख्या 212 है। प्रथम परिच्छेद में 13, द्वितीय में 12, तृतीय में 10, चतुर्थ में 9, पंचम में 3 और षष्ठ परिच्छेद में 74 सूत्र हैं। किन्तु प्रमेयकमलमार्तण्ड में सूत्र संख्या 213 है। परीक्षामुख में दूसरे परिच्छेद