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ग्रन्थमाला-सम्पादकोंका वक्तव्य
१३ भरोसा दिलाया कि हम यथाशक्ति ग्रन्थमालाको चिर जीवित रखनेका प्रयत्न करेंगे। हमने यह चर्चा चलायो, तथा भारतीय ज्ञानपीठके संस्थापक साहू शान्तिप्रसादजी और उनकी विदुषी धर्मपत्नी व ज्ञानपीठको अध्यक्षा श्रीमती रमारानीजीने सहर्ष इस बालिकाको अपनी गोदमें लेना स्वीकार कर लिया। यद्यपि ग्रन्थमाला अपनी आयुके ४५-४६ वर्ष पूर्ण कर चुकी है, तथापि जबतक कोई स्वयं अपने पैरों खड़े होकर चलनेके योग्य नहीं बनता तबतक वह बालक ही माना जाता है। इस ग्रन्थमालाका भो कोई ध्रुवफण्ड एकत्र नहीं हो सका और प्रकाशित ग्रन्थोंका मूल्य तो नियमानुसार लागत मात्र ही रखा जाता था। इसीलिए इधर कुछ ग्रन्थोंके प्रकाशनमें ग्रन्थमालापर कर्ज भी चढ़ गया था। मालाके नये पालकोंने वह कर्ज भी चुका देना स्वीकार कर लिया और ग्रन्थमालाके उद्देश्योंको सुरक्षित रखते हुए उसका सञ्चालन-कार्य भारतीय ज्ञानपीठके अन्तर्गत ले लिया। इस प्रकार ग्रन्थमालाको एक नया जीवन प्राप्त हो गया। इस उदार वात्सल्य और प्रभावनाके लिए साहू-परिवारका जितना अभिनन्दन किया जाये, थोड़ा है।
ग्रन्थमालाके सञ्चालनको सुरक्षा हो गयी। किन्तु उसे सफल बनानेके लिए दूसरी आवश्यकता यह है कि विद्वानों-द्वारा सुसम्पादित ग्रन्थ उसमें प्रकाशनार्थ मिलते रहें। यह कार्य प्रेमीजी अपने ढंगसे चुपचाप बड़े कौशल से करते रहते थे। उनके पश्चात् अब इस उत्तरदायित्वको सम्हालना समस्त विद्वद्वर्गका कर्तव्य हो जाता है। अभी भी शास्त्र-भण्डारोंमें अगणित छोटी-बड़ी अप्रकाशित संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश रचनाएं पड़ी हुई हैं। केवल उनके मूल पाठको ही यथासम्भव शोधकर इस ग्रन्थमालामें प्रकाशनार्थ दिया जा सकता है। श्रुतभण्डारोंके संस्थापकोंने युग-युगान्तरोंको आवश्यकतानुसार श्रुत-परम्पराकी रक्षा की है। किन्तु वर्तमान युगकी मांग है कि समस्त प्राचीन साहित्यको शुद्ध सुचारु रूपसे मुद्रित कराकर प्रकाशित किया जाये, उनका आधुनिक भाषाओंमें अनुवाद कराया जाये तथा उनपर यथासम्भव शोध-प्रबन्ध लिखे जायें । जबतक यह कार्य पूरा नहीं होता
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