________________
प्रमाणप्रमेयकलिका (ई) ब्रह्म-परीक्षा:
ब्रह्माद्वैतवादी वेदान्तियोंका मत है कि यह प्रतिभासमान जगत् मात्र ब्रह्म है । ब्रह्मके अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु नहीं है । वही प्रमाणका विषय
वेदान्तियोंके है। प्रत्यक्ष हो, चाहे अनुमान या आगम। सभी ब्रह्मवादका प्रमाण विधिको ही विषय करते हैं। प्रत्यक्ष दो
पूर्व पक्ष प्रकारका है-१. निर्विकल्पक और २. सविकल्पक । निर्विकल्पक प्रत्यक्षसे मात्र सत्का ही ज्ञान होता है। वह ज्ञान गूंगे व्यक्ति अथवा बच्चोंके ज्ञानकी तरह शुद्ध वस्तुजन्य और शब्दसम्पर्कसे रहित है। इस प्रत्यक्षसे विधिकी तरह निषेध भी जाना जाता हो, सो बात नहीं है, क्योंकि वह निषेधको विषय नहीं करता। सविकल्पक प्रत्यक्षसे यद्यपि 'घट:', 'पट:' इत्यादि भेदकी प्रतीति होती हुई जान पड़ती है, किन्तु वह मिथ्या है, अविद्याके द्वारा वैसा प्रतीत होता है। यथार्थतः वह सत्तारूपसे युक्त पदार्थोंका ही बोधक है। अतः सविकल्पक प्रत्यक्ष भी सत्ता मात्रका साधक है। और यह सत्ता परमब्रह्मरूप ही है। अनुमान भी सत्ताका ही ज्ञापक है। वह इस प्रकार है--विधि ही वस्तु है, क्योंकि वह प्रमेय है और चूंकि प्रमाणोंकी विषयभूत वस्तुको प्रमेय माना गया है, अतः सभी प्रमाण विधि ( भाव ) को ही विषय करने में प्रवृत्त होते हैं। मीमांसकोंके द्वारा स्वीकृत अभाव नामका कोई प्रमाण नहीं है, क्योंकि उसका विषयभूत अभाव कोई वस्तु ही नहीं है । अतएव विधि ही वस्तु है और वही प्रमेय है। एक अन्य अनुमानसे भी विधि-तत्त्वकी ही सिद्धि होती
१. देखिए, मी० श्लो. प्रत्यक्ष सू० श्लोक १२० तथा यही 'प्रमाणप्रमेयकलिका' पृष्ट ३७ ।।
२. देखिए, ब्रह्मसि० तर्कपाद श्लोक १ तथा प्रस्तुत ग्रन्थ पृष्ठ ३७ । ३. देखिए, प्रस्तुत ग्रन्थ पृष्ट ३७ ।। ४. देखिए, मी० श्लो० पृ० ४७८ तथा प्रस्तुत ग्रन्थ पृ० ३७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org