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प्रमाणप्रमेयकलिका
पृथक् और उत्तरवर्ती विद्वान् सिद्ध होते हैं । 'पण्डिताचार्य की उपाधि उनके भिन्न रहनेपर भी दोनोंकी सम्भव है । उससे उनकी अनेकता में कोई बाधा नहीं आती । फलितार्थ यह हुआ कि चौथे, पांचवें और छठे ये तीनों नरेन्द्रसेन एक व्यक्ति हैं और पहले, दूसरे एवं तीसरे नरेन्द्रसेनोंसे वे भिन्न हैं ।
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७. सातवें नरेन्द्रसेन वे हैं, जो शूरस्थ ( सेन ) गणके पुष्कर- गच्छकी गुरुपरम्परा में छत्रसेन ( वि० सं० १७५४ ) के पट्टाधिकारी हुए थे और जिन्होंने शकसंवत् १६५२ ( वि० सं० १७८७ ) में कलमेश्वर (नागपुर) के एक जिनमन्दिरमें 'ज्ञानयन्त्र' की प्रतिष्ठा करवायी थी ।
इस तरह विभिन्न नरेन्द्रसेनोंके ये सात उल्लेख हैं, जो जैन साहित्य में अनुसन्धान करनेपर उपलब्ध हुए हैं । इनके अतिरिक्त और कोई उल्लेख अभीतक दृष्टिगोचर नहीं हुआ । हम ऊपर कह आये हैं कि पहले, और दूसरे ( जिनसेन - अनुज ) नरेन्द्रसेन एक व्यक्ति हैं, तीसरे ( गुणसेन - शिष्य ) नरेन्द्रसेन एक व्यक्ति हैं, चौथे, पाँचवें और छठे (पद्मसेन - शिष्य) नरेन्द्रसेन एक व्यक्ति हैं तथा सातवें ( छत्रसेन - शिष्य ) नरेन्द्रसेन एक व्यक्ति हैं ।
१. 'श्रीमज्जैनमते पुरन्दरनुते श्रीमूलसंघे बरे
श्रीशूरस्थगणे प्रतापसहिते सभूपवृन्दस्तुते । गच्छे पुष्करनामके समभवत् श्रीसोमसेनो गुरुः तत्पट्टे जिनसेनसन्मतिरभूत् धर्मामृतादेशकः ॥ १ ॥ तज्जोऽभूद्धि समन्तभद्र गुणवत् शास्त्रार्थपारंगतः तत्पट्टो दयतर्कशास्त्रकुशलो ध्यानप्रमोदान्वितः । सद्विद्यामृतवर्षणैकजलदः श्रीछत्रसेनो गुरुः तत्पट्टे हि नरेन्द्रसेनचरणौ संपूजयेऽहं मुदा ॥ २ ॥
— नरेन्द्रसेनगुरुपूजा, उद्धृत भ० संप्र० पृ० २० । २. देखो, ज्ञानयंत्र-लेख, उद्घृत भ० संप्र० पृ० २०, लेखाङ्क ६४ ।
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