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प्रस्तावना
परिचय प्राप्त नहीं होता। वादिराजके इस उल्लेखपरसे इतना ही ज्ञात होता है कि ये नरेन्द्रसेन उनके पूर्ववर्ती हैं और वे काफी प्रभावशाली रहे हैं। आश्चर्य नहीं कि वादिराज उनसे उपकृत भी हुए हों और इसलिए उन्होंने विद्यानन्द, अनन्तवोर्य, पूज्यपाद, दयापाल, सन्मतिसागर, कनकसेन, अकलङ्क और स्वामी समन्तभद्र जैसे समर्थ आचार्योंकी श्रेणीमें श्रद्धाके साथ उनका नामोल्लेख किया है और उन्हें निर्दोष नीति ( चारित्र ) का पालक कहा है । वादिराजका समय शकसंवत् ९४७ ( ई० १०२५ ) है। अतः ये नरेन्द्रसेन शकसं० ९४७ से पूर्व हो गये हैं।
२. दूसरे नरेन्द्रसेन वे हैं, जिनकी गुणस्तुति मल्लिषेण सूरिने 'नागकुमारचरित' की अन्तिम प्रशस्तिमें इस प्रकार की है :
तस्यानुजश्चारुचरित्रवृत्तिः प्रख्यातकीर्ति वि पुण्यमूर्तिः । नरेन्द्रसेनो जितवादिसेनो विज्ञाततत्त्वो जितकामसूत्रः ॥४॥
मल्लिषेणने इन नरेन्द्रसेनको यहाँ जिनसेनका अनुज बतलाया है और उन्हें उज्ज्वल चरित्रका धारक, प्रख्यातकीर्ति, पुण्यमूर्ति, वादिविजेता, तत्त्वज्ञ एवं कामविजयीके रूपमें वर्णित किया है। इसी प्रशस्तिके पांचवें पद्यमें उन्होंने अपनेको उनका शिष्य भी प्रकट किया है। भारतीकल्प, कामचाण्डालोकल्प, ज्वालिनीकल्प, भैरवपद्मावतीकल्प सटीक और महापुराण इन ग्रन्थोंकी भी इन्होंने रचना की है और इन ग्रन्थोंकी प्रशस्तियोंमें उन्होंने अपनेको कनकसेनका प्रशिष्य और जिनसेनका शिष्य बतलाया
१ देखिए, पार्श्वनाथचरितकी अन्तिम प्रशस्ति । २. तच्छिष्यो विवुधामणीगुणनिधिः श्रीमल्लिषेणाह्वयः।
संजातः सकलागमेषु निपुणो वाग्देवतालङ्कतिः ॥५॥ ३. देखिए, प्रशस्तिसंग्रह प्रस्तावना पृ० ६१ ( वीरसेवामन्दिर, दिल्ली संस्करण)। __४. वादिराजने भी एक कनकसेनका उल्लेख किया है, जो ऊपर
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