Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Virchand Prabhudas Pandit
Publisher: Jagjivan Uttamchand Lehruchand Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
किलस्य किरःकिर खाइ न पिअइ न विवाह धम्मि न वेच्चइ रूअडर । इह किवणु न जाणइ जह जमहो खगेण पहुच्चइ दूअडउ ।। अथवोऽहवइ-अहवह न मुवंसहं एह खोडि. प्रायोऽधिकारातजाइज्जइ तहिं देसहइ लगभइ पियहो पमाणु । जइ आवइ तो आणि अहवा तं जि निवाणु ॥ दिवो दिवे-दिविदिवि गङ्गा-हाणु. सहस्य सहूंजउ पवसन्ते सहं न गयअ न मुअ विओएं तस्सु । लजिजइ संदेसडा दिन्तेहिं मुहय-जणस्म् ॥ नहेन हिंएसहे मेह पियन्ति जलु एत्तहे वडवानल आवट्टइ ।
पेक्खु गहीरिम सायरहो एकवि कणि नाहिं मोहट्टइ ।। ११०७. पश्चादेवमेवैवेदानों प्रत्युतेतसः पच्छइ एम्बह जि
एम्वहि पच्चलिउ एत्तहे। ४. ४२० । अपभ्रंशे प. वादादीनां पच्छइ इत्यादय आदेशा भवन्ति । पश्चातः पच्छह- पच्छइ होइ विहाणु. एवमेवस्य एम्वइ- एम्बइ सुरउ समत्तु. एवस्य जि:जाउ म जन्तउ पल्लवह देक्खड़ कइ पय देइ । हिअइ तिरिच्छी हउँ जि पर पिउ डम्बरई करेइ ॥ हदानीम एम्वहिंहरि नच्चाविउ पाणइ विम्हइ पाडिउ लोउ। एम्वहि राह-पओहरहं जं भावइ तं होउ ।।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247