Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Virchand Prabhudas Pandit
Publisher: Jagjivan Uttamchand Lehruchand Shah
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(२०८)
क्वाप्रत्ययस्य इ इ इवि अवि इत्येते चत्वार आदेशा
भवन्ति ।
हिडा जइ वेरिथ घणा तो कि अभि चडाहुँ । अम्हार्हि वे हत्था जइ पुणु मारि मराहुं || इउ-गय- घड भज्जिउ जन्ति. डवि
रक्ख सा विस- हारिणी वे कर चुम्बिवि जीउ । पडिबिम्बिअ - मुंजालु जलु जेहिं अडोहिउ पीउ ॥ अवि-
वाह विछोडवि जाहि तुहं हउं तेवँह को दोसु । हिअय- उि जइ नीसरइ जाणउं मुञ्ज स रोसु ॥
११२७. एप्प्येपिण्वेव्येविणवः । ४. ४४० । अपभ्रंशे तवामत्ययस्य एप्पि एपिणु एवि रविणु इत्येते चत्वार आदेशा भवन्ति ।
जेपि असेसु कसाय-बलु देष्पिणु अभउ जयस्तु लेवि महन्वय सिवु लहहिं झाएविणु तत्तस्सु ॥ पृथग्योग उत्तरार्थः ॥
१२८. तुम एवमणाणहमणहिं च । ४. ४४१ | अपभ्रंशे तुमः प्रत्ययस्य एवम् अण अणहम् अणहिं इत्येते चत्वारः चकारात् एप्प एपिणु एत्रि एविणु इत्येते एवं चाष्टवादेशा भवन्ति ।
देवं दुक्करु निअउ धणु करण न त पडिहाइ | एम्बर सुहु अहं मणु पर भुञ्जणहिं न जाइ ॥ जेपि चएप्पिणु सयल घर लेविणु तवु पालेबि । विणु सन्ते तित्थेसरेण को सक्कड़ भुवणेत्रि ॥
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