Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Virchand Prabhudas Pandit
Publisher: Jagjivan Uttamchand Lehruchand Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२०९) *१११३. गमेरेपिण्प्योरेलुंग वा ।४.४४२। अपभ्रशे गमेर्धातोः
परयोरेप्पिणु एप्पि इत्यादेशयोरेकारस्य लुग् भवति वा । गम्पिणु वाणारसिहि नर अह उज्जेणिहिं गप्पि । मुआ परावहि परम-पउ दिवन्तरई म जम्पि ॥ पक्षेगङ्ग गमेप्पिणु जो मुअइ जो सिर-तित्थ गमेपि ।
कीलदि तिदसावाम--गउ सो जम-लोउ जिणेपि ॥ १११४. तुनोणः । ४. ४४३ । अपभ्रंशे तनः प्रत्ययस्य अण
इत्यादेशो भवति । हस्थि मारणउ, लोउ बोल्लणउ पडहु वजणउ, सुणउ
भसणउ ॥ ... १.१५. इवार्थे नं-नउ--नाइ-नाथह-जणि--जणवः । ४.
४४४ । अपभ्रंशे इवशब्दस्याथै नै नउ नाइ नाबइ जणि जणु इत्येते षट् भवन्ति । नं-नं मल्ल-जुज्झु ससि-राहु करहिं. नउ-- रवि-अत्यमणि समाउलेग कण्ठि विइण्णु न छिगु । चक्के खण्ड मुणालि अहे न उ जीवग्गलु दिण्णु ॥ नाइवलयावलि-निवडण-भएण धण उद्धन्भुअ जाइ । वल्लह-विरह-महादहहो थाह गवेसइ नाइ ।। नावइपेक्षेविषु मुहु जिण-वरहो दीहर--नयण सलोणु ।
नावइ गुरु-मच्छर- भरिउ जलणि पवीसइ लोणु ॥ * सूत्रांक ९४० थी. ८ अंक ओच्छा गणवा. अने सूत्रांक १०७० थी. १६ अंक ओच्छा गणवाथी आ १११३नो अंक बराबर जणाशे.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247