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जातक-कथाओं में बुद्ध के पूर्व जीवन संबंधी कथाओं का संग्रह है । बुद्धत्व प्राप्त करने के पूर्व गौतम बुद्ध ने अनेक योनियों में जन्म लिया, जहाँ वे बोधिसत्व की अवस्था में रहे । कभी पशु-पक्षी, कभी मनुष्य और कभी देवयोनि में जन्म धारण कर वे अपने जीवन का लोकहित संबंधी कोई शिक्षाप्रद आख्यान सुनाते हैं। ये मनोरंजक आख्यान कभी दृष्टांतों, कभी उपमाओं, कभी सूक्तियों, कभी प्रश्नोत्तरों, कभी प्रहेलिकाओं और कभी हास्य एवं व्यंग्य कथाओं के रूप में हमारे सामने आते हैं। इन कथाओं में से यदि बोधिसत्व का नाम हटा दिया जाये तो ये कथाएँ शुद्ध लौकिक कथा के रूप में रह जाती हैं। जैन कथाओं और जातक-कथाओं की तुलना
जैन कथाओं और बौद्धों की जातक-कथाओं की तुलना करते हुए डाक्टर हर्टल ने जैन कथाओं को श्रेष्ठ बताया है। इस संबंध में उनका निम्न वक्तव्य ध्यान देने योग्य है-“जातक की कहानी का आरंभ अधिकांश रूप में नगण्य होता है। अमुक-अमुक घटना अमुक-अमुक भिक्षु के साथ हुई। भगवान बुद्ध आते हैं। बौद्ध भिक्षु उनसे प्रश्न करते हैं वर्तमान परिस्थिति के संबंध में; बुद्ध उस भिक्षु के पूर्व भव को कथा सुनाकर उत्तर देते हैं। यही पूर्वभब की कथा जातक की मुख्य कथा हैं (जब कि जैन कहानियों में कहानी के निष्कर्ष में यह बात कही जाती है)। बोधिसत्व अथवा भावी बुद्ध इस कहानी में अपनी भूमिका अदा करते हैं, अवश्य ही वह भूमिका उनके अनुरूप होनी चाहिए । फिर, इस समस्त कहानी का शिक्षाप्रद होना आवश्यक है । जातक-कथाओं के जहाँ तक मनोरंजक होने का संबंध है, यह बौद्धों की खोज नहीं है; वे भारत में जगह-जगह बिखरे हुए कथा-कहानियों के विशाल भंडार से ली गयी हैं । इनमें से कितनी ही जनप्रिय कहानियाँ पटुतापूर्ण हैं, विचित्र हैं अथवा किसी रूप में मनोरंजक भी, लेकिन शिक्षाप्रद वे नहीं हैं । अतएव बौद्ध भिक्षु, जिनकी जातक कथाएँ हर हालत में शिक्षाप्रद और बोधिसत्व के अनुरूप होनी चाहिए, लोकप्रिय कथाओं में अपने उद्देश्य के अनुसार परिवर्तन करने के लिए बाध्य होते हैं, और इसका दुःखद परिणाम प्रायः यह होता है कि इस प्रकार की कथा नीरस बनकर रह जाती है, जिसमें से उसका चमत्कार ही नष्ट हो जाता है, और इसका विकास प्रायः मनोवैज्ञानिक संभाव्यता के विपरीत होता है। बौद्ध लोग अपने सिद्धांतों का सीधा उपदेश देने के लिए बोधिसत्व का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि मनुष्य को बुद्धधर्म की मैतिकता की धारणा के
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