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७ मधुबिन्दु दृष्टांत
मधुबिंदु दृष्टांत का उल्लेख किया जा चुका है। वसुदेवहिंडी में सांसारिक विषयभोगों की क्षणभंगुरता सिद्ध करने के लिए यह दृष्टांत दिया है । तत्पश्चात् हरिभद्रसूरि की समराइच्चकहा, अमितगति की धर्म-परीक्षा और हेमचन्द्राचार्य की स्थविरावलि में इस दृष्टांत का उपयोग किया गया है। महाभारत और बौद्धों के अवदान साहित्य में यह उपलब्ध है। इस प्रकार के कथानकों की गणना 'श्रमण काव्य' के अन्तर्गत की गयी है । विश्वकथासाहित्य में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
इन सब दृष्टियों को ध्यान में रखकर प्राकृत जैन कथा साहित्य का अध्ययन अवश्य ही उपयोगी सिद्ध होगा।
सौभाग्य से प्राकृत साहित्य के अध्ययन की ओर विद्वानों की रुचि बढ़ती जा रही है, लेकिन अध्ययन की सामग्री जैसी चाहिए, वैसी हम अभी तक नहीं तैयार कर सके हैं। प्राकृत कथाओं के एक विश्वकोष (एन्साइक्लोपीडिया) की आवश्यकता है जिसमें प्राकृत कथाओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जा सके । प्राकृत के एक सर्वांगीण कोश की नितान्त आवश्यकता है, अभी तक ४२ वर्ष पुराने पाइयसद्दमहण्णवो से ही हम काम चलाते आ रहे हैं । प्राकृत कथा-ग्रन्थों के आलोचनात्मक वैज्ञानिक ढंग से सुसंपादित संस्करणों की आवश्यकता है जिससे कथा साहित्य का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा सके ।
प्राकृत कथा-साहित्य का अध्ययन अनेक दृष्टियों से उपयोगी है। सर्वप्रथम इसमें लोकजीवन का जैसा यथार्थवादी लौकिक चित्रण मिलता है, वैसा वैदिक संस्कृत साहित्य अथवा बौद्ध पालि साहित्य में नहीं मिलता । वैदिक साहित्य की कहानियाँ प्रायः पौराणिक हैं जिनका प्राइवेट तौर पर ही पठन-पाठन होता रहा है, अतएव लोकजीवन के निकट वे नहीं आ सकीं । वैदिक कथाओं के नमूने महाभारत, कथासरित्सागर, दशकुमारचरित, तंत्राख्यायिका, हितोपदेश आदि रचनाओं में देखे जा सकते हैं । बौद्ध कथा-साहित्य ने अवश्य इस दिशा में प्रगति की । लोकजीवन संबंधी कथा-कहानियों ने यायावर बौद्ध भिक्षुओं के हाथ में पड़कर लोकतांत्रिक रूप धारण किया । फिर भी, जैन कथा-कहानियों जैसी व्यापकता इन कहानियों में न आ सकी । इसका कारण बताते हुए डाक्टर हर्टल ने लिखा है कि जैन कथाकार बौद्ध कथाकारों की भाँति न तो बुद्ध के अतीत जीवन की कहानी को प्रमुखता देते थे और न बोधिसत्व के रूप में उनके भविष्य जीवन की कहानी को; बौद्ध कथाओं की
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