Book Title: Prakrit Jain Katha Sahitya
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 196
________________ १८७ द्वीपायनऋषि १०५ धन ४५ (टि) ९८, धनंजय १६९ धनदत्त ४६ धनदेव (टि.), १७ (टि.), २७, ४६, ८६ (टि.) धनपति १२१ धनपद १२१ धनपाल (कवि) २७ धनवसू १२१ धनश्री ४५ (टि.) धन्यसार्थवाह १०४ धम्मकहाणयकोस (धर्मकथानककोष) ५५ धम्मपद ९५ (टि.) धम्मपद अट्ठकथा ८६ (टि.) १६१ (टि.) धम्मिल्ल ५६ धम्मिल्लहिंडी ११९ धरण ४५ (टि.) ४६, १२१, धर्मचन्द्र २८ धर्मदत्त ४१ (टि.), धर्मदास १०७-गणि १७ धर्मपरीक्षा ९८ (टि.) धर्मबुद्धि ६२ (टि.) धर्मसेनगणि महत्तर २८, ११०, ११९, ११९ (टि.), धर्मोपदेशमाला ११० धर्मोपदेशमाला प्रकरण १०७ धर्मोपदेशमाला विवरण १०७, ११३ धुंधुमार १४, धूमसिंह १७, १३८, १३९, १७५, धूर्तविट ६३ (टि.) धूर्ताख्यान २६, ११०, ११९, ११९ (टि.) धृतराष्ट्र ९८ (टि.) धृतराष्ट्रेशोकापनोद ९६ (टि.) ९८ (टि.) ध्रुवक १५४, १५५, १६२, नन्दक ८६ (टि.) नन्दनवन १४३ नन्दीफलवृक्ष (अ.) १०४ नन्दीश्वर १२० नन्दीसूत्र ७१ (टि.) नमि ९६ नमिराजर्षि ९५ नमुचि ७२ (टि), १४६, १४७, १७३, १७४ नम्मयासुन्दरीकहा १०६, ११० नरवाहनदत्त १४, ६५, ११९, १२० १२५, १२९, १३०, १३२, १४२, १४८, नरवाहनदत्तकथा २६ नरसिंहभाई पटेल २७ (टि.) नर्मदासुन्दरी ४५ (टि.) १०८ नर्मदासुन्दरीकथा ४५ नल १४, नवहंस ४ (टि.) नहुष १४, नागदत्त १०६ नागरकेश्वर १४८ नागेन्द्र १२१ नारद १४४, १४७, १५१, १७६, नालन्दा देवनागरी पालिग्रन्थमाला ११ (टि.) निग्रोध जातक ८३ (टि.) निशीथ १०५--भाष्य ११ (टि.), २१ (टि.) २६, ५९ (टि.) १०९ (टि.) निशीथविशेषचूणि २१ (टि.), निशीथसूत्र ३ (टि.), निहस १४, नेमिचंद २७ (टि.) नेमिचन्द्र १४ (टि.) नेमिचन्द्र (आम्रदेव) ३९ (टि.) नेमिचन्द्रगणि २७ नेमिचन्द्रसूरि (देवेन्द्रगणि) ५५, १६९, १७०, १७१, १७३, नेमिचन्द्रीयउत्तराध्ययनवृत्ति १४ (टि.) १६१ (टि.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210