Book Title: Prakrit Jain Katha Sahitya
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 179
________________ १७० घोषित किया गया है । वसुदेवहिंडी की कथा का यह संक्षिप्तीकरण है। सामदत्ता का कथानक यहाँ नहीं है। अगड़त्त चोर की भगिनी को पकड़कर राजकुल में ले जाता है यहीं पर कथा का अन्त हो जाता है । कथा अन्य पुरुष में कही गयी है। नेमिचन्द्रसूरि की उत्तराध्ययनवृत्ति (४, ८३अ-९३) में प्रतिबुद्धजीवी के दृष्टांत रूप में अगड़दत्त की कथा आती है। यहाँ भी 'वृद्धवाद' का उल्लेख है । कथा ३२९ गाथाओं में है । अगड़दत्त शंखपुर नगर के सुंदर राजा की सुलसा भार्या का पुत्र था । वह धर्म और दया से रहित, मद्य, मांस और मधु का सेवी था। पुरवासियों ने राजकुमार के दुराचरण की राजा से शिकायत की जिससे राजा ने उसे देश छोड़कर चले जाने का आदेश दिया । अगड़दत्त ने वाराणसी पहुँचकर पवनचंड नामक आचार्य से शस्त्रविद्या की शिक्षा प्राप्त की। उद्यान के पास बंधुदत्त श्रेष्ठी की विवाहिता कन्या मदनमंजरी उसकी ओर आकृष्ट हुई। कुमार ने मदनमंजरी को वचन दिया कि जिस दिन वह स्वदेश के लिए प्रस्थान करेगा, उसे भी साथ ले चलेगा। अगड़दत्त परिव्राजक बनकर रहने वाले भुजंगम चोर का पता लगाता है और उसका वधकर, वट वृक्ष के नीचे स्थित भूमिगृह में रहने वाली उसकी भगिनी वीरमती से मिलता है। वीरमती राजकुल में ले जायी जाती है और राजा भूमिगृह के समस्त धन को जब्त कर नागरिकों में बाँट देता है। अगड़दत्त के पौरुष से प्रसन्न हो, वह उसके साथ अपनी राजकुमारी कमलसेना का विवाह कर देता है। कुमार मदनमंजरी को साथ ले, रथ में सवार हो, शंखपुर के लिए प्रस्थान करता है। एक भयानक अटवी में दुर्योधन चोर के साथ होने वाले संग्राम में चोर मारा जाता है । मरते समय चोर जयश्री नाम की अपनी भार्या का पता कुमार को बताता है । वनगज, व्याघ्र और सर्प पर विजय प्राप्त कर अगड़दत्त शंखपुर पहुँचता है। कुमार मदनमंजरी के साथ वसंतक्रीड़ा के लिए उद्यान में जाता है। मदनमंजरी को सर्प डस लेता है। अभिमंत्रित जल से विद्याधरयुगल उसे स्वस्थ करता है । देवकुल में मदनमंजरी अगड़दत्त की हत्या का प्रयत्न करती है। चारण मुनि का उपदेश सुनकर अगड़दत्त प्रतिबोध प्राप्त करता है । स्पष्ट है कि अगड़दत्त कथानक के तीनों रूपांतरों में शांतिसूरि का कथानक अत्यन्त संक्षिप्त है, जो कि वसुदेवहिंडी पर आधारित है । नेमिचंद्रसूरि का कथानक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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