________________
१७४
बलि, बृहस्पति, प्रह्लाद और नमुचि नामक चार मंत्री हैं। मंत्रियों ने जैन श्रमण श्रुतसागर के वध का प्रयत्न किया । राजा ने चारों को देश से बहिष्कृत कर दिया । हस्तिनापुर पहुँचकर उन्होंने राजा महापद्म का मंत्रित्व प्राप्त कर लिया । स्वदेश पर आक्रमण करने वाले राजा सिंहबल को पराजित करने के कारण महापद्म ने बलि को वर प्रदान किया । बली ने सात दिन पर्यन्त राज्य करने का वर माँगा । नगर तुरत ही यज्ञशालाएँ स्थापित कर दी गईं और बेरोकटोक महिष, अजा आदि पशुओं का वध किया जाने लगा । जैन श्रमण प्रत्याख्यान का अवलंबन ग्रहण कर कायोत्सर्ग में स्थित हो गये । विष्णुकुमार संघ की रक्षा के लिए मिथिला से हस्तिनापुर पहुँचे । वामन का रूप धारण कर सभा में स्थित बलि के समक्ष वे वेदध्वनि का उच्चारण करने लगे । उन्होंने तीन पग भूमि की याचना की । एक पैर उन्होने मेरु पर्वत पर, दूसरा मानुषोत्तर पर्वत पर रक्खा और जब तीसरा पैर रखने का स्थान न मिला तो उसे घुमाकर कहने लगे कि बताओ इसे कहाँ रखा जाये ? भय से संत्रस्त हुए किन्नरों और विद्याधरो ने उस चरण की पूजा की। शासन देवताओं ने बलि को बंधन में बांध लिया और उसे गधे पर चढ़ाकर नगर में घुमाया । किन्नरों और विद्याधरों ने विष्णु मुनि से अपने चरण को सिकोड़ लेने की प्रार्थना की । विद्याधरों को वीणाएँ प्रदान की गयीं ।
वसुदेवहिंडी के मूल कथानक में कितना परिवर्तन कर दिया गया । बलि दैत्य के स्थान पर बलि नामक मंत्री और वामन अवतार की कल्पना कर जैन कथाकारों ने ब्राह्मण परम्परा को अक्षरशः मान्य कर लिया ।
४. चारुदत्त की कथा
नाम
चारुदत्त की कथा की तुलना की जा चुकी है । वसुदेवहिंडी का चारुदत्त श्रेष्ठ बृहत्कथाश्लोकसंग्रह का सानुदास वणिक् है । चारु नामक मुनि के संबंध से चारुदत्त और सानु नामक दिगंबर मुनि के संबंध से सानुदास रक्खा गया । चारुदत्त और सानुदास दोनों के मित्रों की नामावली में कोई अंतर नहीं है । दोनों पुलिनतट पर पत्रच्छेद्य में समय व्यतीत करते हैं। दोनों कथानकों में पुलिनतट पर बने हुए पदचिह्नों को देखकर विद्याधर और उसकी प्रिया का पता लगाते हैं। दोनों में पत्रों से आकीर्ण लतागृह में पहुँचते हैं । लोहे की कीलों से बंधे हुए विद्याधर को बंधन से मुक्त करते हैं । दोनों जगह विद्याधर का नाम अमितगति है और वह अपना समस्त वृत्तान्त सुनाता है । वसुदेवडिंडी में उसकी प्रिया का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org