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देखो, विद्याधर के पैरों के चारों ओर उसके पैर दिखायी दे रहे हैं । चारुस्वामी ! इससे वह अविद्याधरी कुपित हो गयी ।
हरिशिख --- इस बात का पता कैसे लगा ?
गोमुख — यह देखो, क्रोध के आवेश में उठे हुए उसके अस्तव्यस्त पैर । और देखो इसके पास ही ये पैर विद्याधर के हैं जो उसके पीछे-पीछे चल रहा है । यह देखो, जल्दी-जल्दी रक्खी हुई उसकी पदपंक्ति उसका मार्ग रोक रही है । और देखो, वह अविद्याधरी अपनी हँसी रोककर इधर से गयी और उधर से वापिस लौटी । उसके गुस्सा हो जाने पर विद्याधर ने वह पुष्पगुच्छ उसे दे दिया । लेकिन उसने पुष्पगुच्छ को फेंककर विद्याधर की छाती पर मारा | और जानते हो उसके क्रोध के साथ ही वह गुच्छ भी बिखर गया ! यह देखकर विद्याधर अपनी प्रिया के पैरों में गिर पड़ा । यहाँ उसके पैरों के समीप विद्याधर के मुकुट से दबा हुआ रेत दिखायी दे रहा है । बस फिर क्या था ? सुकुमार गुस्से वाली उसकी प्रिया जल्दी ही प्रसन्न हो गयी । यह देखो, नदीतट पर भ्रमण करते हुए उन दोनों के पैर ! चारुस्वामी ! और सुनिए, जब वह विद्याधर के मुख पर अपनी दृष्टि गड़ायी हुई थी तो उसके पैर में कंकड़ी चुभ गयी । विद्याधर ने जल्दी से उसका पैर ऊपर उठा लिया । वेदना के कारण उसने विद्याधर के कन्धे का सहारा लिया । यह देखो, यह एक पैर अविद्याधरी का है और ये दो विद्याधर के । विद्याधर ने उसके पैर में से खून से गीला हुआ रेत निकाल कर फेंक दिया ।
हरिशिख --- जिसे तुम खून कह रहे हो, कहीं वह महावर तो नहीं ? गोमुख- -भई, महावर का रस कड़वा होता है; उस पर मक्खियाँ नहीं बैठती । यह तो हाल के लगे हुए घाव में से दुर्गंधि-युक्त, मधुर और माँस में से टपकने वाला खून है, इसलिए इस पर मक्खियाँ भिनभिना रही हैं । चारुस्वामी ! और फिर वह विद्याधर उसे अपनी बाहुओं में भरकर ले गया । हरिशिख --- यह कैसे पता चला ?
गोमुख — देखो, स्त्री के पैर यहाँ दिखायी नहीं देते जबकि पुरुष के पैर साफ दिखायी दे रहे हैं । तथा चारुस्वामी ! मेरा ख्याल है कि वह विद्याधर अपनी प्रेमिका के साथ सामने के लताघर में होगा। आइए, हम यहीं ठहर जायें । एकांत वास करते हुए उन्हें देखना ठीक नहीं ।
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