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आगे चलने पर सही के बिल में लटकते हुए बाल दिखायी पड़े । गोमुख ने हरिशिख से उन्हें सूंघने को कहा । सूंघने पर पता लगा कि उनकी गंध स्थिर है और गर्मी में रहने के कारण उनमें से सुगंध की मानो वर्षा हो रही है।
गोमुख –—–—चारुस्वामी जो कोई दीर्घायु होता है, उसके केशों और वस्त्रों में ऐसी सुगंध होती है । यह विद्याधर दीर्घायु और उत्तम जान पड़ता है । यह राज्याभिषेक का अधिकारी होना चाहिए ।
आगे बढ़ने पर देखा कि वह विद्याधर कदंब वृक्ष पर पाँच लोहे की कीलों से बंधा हुआ पड़ा है— एक कील उसके कपाल में, दो हाथों में और दो उसके पैरों में । लेकिन फिर भी उसके मुख की कांति में कोई अंतर नहीं दिखायी पड़ा, उसके शरीर की छवि सौम्य थी, हाथों और पैरों में से रक्त नहीं बह रहा था, और तीव्र वेदना होने पर भी उसका श्वासोच्छ्वास मंद नहीं पड़ा था ।
उसके चर्मरत्न को खोलकर देखा तो उसमें चार औषधियाँ मौजूद थीं । एक से शल्यों को निकाला (विशल्यकरणी ) दूसरी से जिलाया (संजीवनी) और तीसरी से घावों को अच्छा किया (संरोहणी ) ।
विशल्यकरणी औषधि को उसके कपाल में चुपड़ने से कपाल में ठोकी हुई कील बाहर निकलकर गिर पड़ी । फिर उसके दोनों हाथ और पैरों को छुडाया । पीताम्बर युक्त कदलीदल के पत्र पर उसे सुलाया । उसके घावों में संरोहणी छिड़की । कदलीपत्रों की वायु और जलकणों द्वारा उसे होश में लाया गया ।
होश में आते ही विद्याधर एकदम दौड़कर चिल्लाने लगा- - अरे दुराचारी धूमसिंह ! ठहर ! तू भागकर कहाँ जायगा ? लेकिन वहाँ कोई न था, इसलिए व्यर्थ ही गर्जना करने के कारण वह लज्जित होकर बैठ गया । तत्पश्चात् सरोवर मैं स्नान कर उसने वस्त्राभूषण धारण किये ।
चारुदत्त और उसके साथियों के समीप आकर वह कहने लगा- अरे ! मुझे मेरे शत्रु ने बांध दिया था, मुझे किसने छुड़ाया ?
गोमुख ने उत्तर दिया - हमार मित्र इभ्यपुत्र चारुस्वामी ने । तत्पश्चात विद्याधर ने अपनी रामकहानी सुनाई.
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