Book Title: Prakrit Jain Katha Sahitya
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 163
________________ (आ) बृहत्कथाश्लोकसंग्रहः एक उपवन में पहुँच ध्रुवक ने सानुदास के लिए माधवी और आम्र वृक्ष के पल्लवों से उच्च आसन तैयार किया । अपनी प्रियाओं के हाथों से मधुपान करते हुए मित्रगण उपस्थित थे । वसंतराग गाया जा रहा था, वेणुतंत्री का मधुर शब्द सुनाई दे रहा था, तथा भौरौं का गुंजार और कोकिल की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही थी । कर्दम और शैवाल से लिपटा हुआ कोई पुरुष कमलपत्र में पुष्करमधु लिये हुए सरोवर से निकला । एक मित्र ने कहा---अरे मूर्ख ! यह पुष्करमधु क्या, तू अनर्थ की जड़ ले आया है । यदि सब मित्र इसका पान करने लगे तो एक-एक बून्द भी उनके हिस्से में न आये । उन्होंने सोचा कि राजाओं के लिए दुर्लभ इस पुष्करमधु को राजा को क्यों न दे दिया जाय । लेकिन राजा से और कोई माँग लेगा, वे रत्न के लोभी जो होते हैं । पाप भावना से प्रोत्साहित हुआ राजा हमारा सर्वस्व हरण कर सकता है, अतः उसे देना ठीक नहीं ! इसमें अधिक रस वाला स्वाद है, मद्य यह नहीं है, इसलिए मानुदास ही क्यों न इसका पान करे ? तत्पश्चात् मित्रों के अनुरोध पर, सानुदास ने पुष्करमधु का पान कर लिया । यह मधु अत्यन्त स्वादिष्ट था, मानों कोई अपूर्व रस हो; अमृत भी उसके सामने फीका जान पड़ता था। रस की गंध से सानुदास को प्यास लगी। उसके पान करने से उसे चक्कर आने लगा। इतने में सानुदास को किसी प्रमदा के आक्रन्दन की ध्वनि सुनाई दी। आख्यायिका, कथा, काव्य और नाटकों में ऐसी प्रमदा का वर्णन सुनने में महीं आया था । सानुदास ने उससे दुख का कारण पूछा । प्रमदा ने बताया-आप ही मेरे दुख के कारण हैं । सानुदास ने उसे ढाढ़स बंधाया । प्रमदा ने कहा कि वह उसके शरीर की कामना करती है। उसका नाम गंगदत्ता था । वह उसे खींचकर अपने भवन में ले गयी । सानुदास को विश्राम करने के लिए कहा गया; उसके पीने के लिए पुष्करमधु मंगवाया । सानुदास ने सोचा कि अवश्य ही गंगदत्ता यक्षी होनी चाहिए, अन्यथा मनुष्यलोक में दुर्लभ पुष्करमधु उसके पास कहाँ से आया ? सानुदास ने पुष्करमधु की गंध से अधिवासित वासमंदिर में प्रवेश किया । एक दूसरे को शरीर का प्रदान । तत्पश्चात् दोनों सुहृद्गोष्ठी में सम्मिलित हुए । गंगदत्ता अपने हाथ का सहारा देकर सानुदास को ले गयी । जब अपने मित्रों को सानुदास दिखायी न दिया तो वे लोग आश्चर्य में पड़ गये । एक ने कहा कि उसे कोई यक्षकन्या सिद्ध हो गयी है, इसलिए वह अदृश्य हो गया है। किसी ने ताली बजाकर हँसते हुए अदृश्य यक्षीभर्ता को नमस्कार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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