Book Title: Prakrit Jain Katha Sahitya
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 176
________________ जैनकथाओं में वैविध्य उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि प्राकृत जैन कथा साहित्य लौकिक कथा-कहानियों का अक्षय भंडार है। कितनी ही रोचक और मनोरंजक लोककथाएँ, लोकगाथाएँ, नीतिकथाएँ, दंतकथाएँ (लीजेंड्स), परीकथाएँ, प्राणिकथाएँ, कल्पितकथाएँ, दृष्टान्तकथाएँ, लघुकथाएँ, आख्यान और वार्ताएँ, आदि यहाँ उपलब्ध हैं जो भारतीय संस्कृति की अक्षय निधि हैं । डा० विंटरनित्स के शब्दों में, इस साहित्य में प्राचीन भारतीय कथा साहित्य के अनेक उज्ज्वल रत्न विद्यमान हैं। सुप्रसिद्ध डाक्टर हर्टल ने जैन कथाकारों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए लिखा है कि इन विद्वानों ने हमें कितनी ऐसी अनुपम भारतीय कथाओं का परिचय कराया है जो हमें अन्य किसी स्रोत से उपलब्ध न हो पातीं। जैन विद्वानों को कहानी कहने का शौक था । वह इसलिए कि जनसाधारण में अपने धर्म का प्रचार करने की उनमें लगन थी। विशुद्ध धार्मिक सिद्धान्तों का उपदेश लोगों को रुचिकर होता नहीं, इसलिए वे उसमें किसी मनोरंजक वार्ता, आख्यान अथवा दृष्टांत का समावेश कर उसे प्रभावकारी बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते थे।' हम कोई भी जैनों का धार्मिक ग्रंथ उठाकर देखे, कोई-न-कोई कथा अवश्य मिळेगी-दान की, पूजा की, भक्ति की, परोपकार की, सत्य की, अहिंसा अथवा सांसारिक विषय-भोगों में तृष्णा कम करने की । ___ अनुपलब्ध कथा-साहित्य णायाधम्मकहाओ ( ज्ञातृधर्मकथा ) जैन कथा-साहित्य का सर्वप्रथम ग्रन्थ है जिसमें १९ अध्ययनों में ज्ञातृपुत्र महावीर की धर्मकथाओं का संग्रह है। प्राचीन परम्परा के अनुसार इस ग्रन्थ में साढे तीन करोड़ कथाएँ और उतनी ही उपकथाओं १. मलधारी राजशेखरसूरि के विनोदात्मक कथासंग्रह (१) में कमल श्रेष्ठी की कहानी आती है । धर्माचरण से हीन होने के कारण उसके पिता ने उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए जैन गुरुओं के पास मेजा । प्रथम गुरु के निकट पहुँच, उपदेश देते समय ऊपर-नीचे जानेवाली उनकी गळे की घंटी को वह गिनता रहा। दूसरे गुरु का उपदेश श्रवण करते समय, बिल में से निकलकर बाहर जाने वाली चींटियों की गिनती करता रहा । अन्त में तीसरे गुरु ने कामशास्त्र के रहस्य का प्ररूपण कर उसे धर्म की ओर उन्मुख किया । धर्मकथा के जो आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी नामके चार प्रकार कहे गये हैं उनका तात्पर्य यही है कि पहले तो श्रोता को अनुकूल लाने वाली कथायें सुनाकर उसे आकृष्ट किया जाता है, फिर प्रतिकूल लगने वाली कथाएँ सुनाकर अमुकूल कथाओं की ओर से उसका मन हटाया जाता है, फिर यह धार्मिक विचारों को ग्रहण करने लगता है, और अन्त में सांसारिक विषयभोगों से निवृत्त हो वैराग्य धारण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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