________________
१५३
हुई । मित्रों ने चारुदत्त को विश्राम करने के लिए कहा और वे पुष्पों का चयन करने चल दिये।
चारुदत्त को मधुरस का नशा चढ़ने लगा । अशोक वृक्ष के नीचे उसे एक सुन्दर युवती दिखायी दी । वह कोई अप्सरा थी और देवाधिपति इन्द्र ने चारुदत्त की सेवा में उपस्थित रहने के लिए उसे भेजा था । अप्सरा ने बताया कि देवता लोग सबको दर्शन नहीं देते, लेकिन वे सबको देख सकते हैं । अतः चारुदत्त के मित्र अप्सरा को नहीं देख सकते और अप्सरा के प्रभाव से चारुदत्त को भी देखने में असमर्थ हैं।
मद के कारण चारुदत्त के पैर लड़खड़ाने लगे । अप्सरा ने अपने दाहिने हाथ से चारुदत्त की भुजाएँ और उसका सिर थाम लिया। चारुदत्त लड़खड़ाता हुआ उसके कण्ठ का अवलंबन लेकर चला । देव-अप्सरा के स्पर्श से उसका शरीर रोमांचित हो उठा । अप्सरा अपने विमान में बैठाकर उसे अपने भवन में ले गयी । अपनी उम्र वाली तरुणियों से वह परिवेष्टित थी। विषयसुख भोगने के लिए उसने चारुदत्त को आमंत्रित किया । रतिपरायण चारुदत्त निद्रादेवी की गोद में सो गया।
नशा उतरने पर आँख खुली तो उसे वसंततिलका का भवन दिखायी दिया । वसंततिलका ने कहा-मैं गणिका पुत्री वसंततिलका हूँ, कलाओं की शिक्षा मैंने प्राप्त की है। धन का मुझे लोभ नहीं, गुण मुझे प्रिय हैं । मैंने हृदय से तुम्हें वरण किया है । तुम्हारी माता की अनुमति से गोमुख आदि तुम्हारे मित्रों ने उद्यान में पहुँच, किसी युक्ति से तुम्हें मुझे सौंप दिया था। उसके बाद वह वस्त्र बदलकर आई और हाथों की अंजलि-पूर्वक चारुदत्त से विनयपूर्वक कहने लगी"मैं तुम्हारी सेविका हूँ, मुझे भार्या रूप में स्वीकार करो । ये देखिए, ये मेर क्षौमवस्त्र जो मेरे कन्यापन को सूचित करते हैं। मैं तुम्हारी जीवनपर्यंत उपकारिणी बनकर रहूँगी।"
चारुदत्त ने वसंततिलका को भार्या रूप में स्वीकार किया। उसके साथ रहकर वह स्वच्छन्द विहार करने लगा । उसकी माँ कुछ-न-कुछ उपहार आदि उनके लिए हमेशा भेजती रहती । इस प्रकार विषयसुख का उपभोग करते हुए १२ वर्ष व्यतीत हो गये ।' १. वही. पृ. १४२-४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org