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कुछ समय पश्चात् लतागृह में से अपनी सहचरी के साथ एक मो र बाहर निकला।
गोमुख-चारुस्वामी ! देखिए, इस लतागृह में विद्याधर नहीं है ।
हरिशिख-अब तक तो कहते आ रहे थे कि अपनी प्रिया के साथ विद्याधर इस लतागृह के अन्दर है, अब कहने लगे नहीं है ।
गोमुख-देखो, यह मोर निःशंक होकर अन्दर से निकला है। यदि कोई मनुष्य अन्दर होता तो वह ऐसा नहीं करता ।
गोमुख के वचन को प्रमाण मान, चारुदत्त ने अपने मित्रों के साथ लतागृह में प्रवेश किया तो वहाँ थोड़ी देर पहले उपर्युक्त कुसुमों की शैया देखी ।
गोमुख-विद्याधर को यहाँ से गये हुए बहुत समय नहीं हुआ है । ये उसके जाने के पैर दिखायी दे रहे हैं । वह यहाँ अवश्य लौटकर आयेगा । यह देखो, वृक्ष की शाखा में लटका हुआ चीते के चमड़े से बना हुआ उसका कोशरत्न (थैली) और खड्ग दिखाई दे रहे हैं । इन्हें लेने वह अवश्य आयेगा ।
विद्याधर के पदचिह्नों को देखते हुए गोमुख ने कहा-~-चारुस्वामी! यह विद्याधर किसी महान् संकट में पड़ गया मालूम होता है । पता नहीं वह जीता भी है या नहीं ?
चारुस्वामी--क्यों ?
गोमुख-क्या तुम इन दो और पैरों को नहीं देखते ? पता नहीं लगता कि ये पैर कहाँ से आये हैं, तथा पृथ्वी पर से आकाश में उड़ जाने के कारण रेत उड़ी हुई जान पड़ती है । लगता है यहाँ इस विद्याधर को किसी ने गिरा दिया है। यह देखो, उसे खींचकर नीचे डालने से उसके शरीर की आकृति बनी हुई है । यहाँ स्त्री के पैर भी नीचे पड़े हुए दिखायी दे रहे हैं। आइए, हम लोग इन पदचिह्नों का अनुकरण करते हुए आगे बढ़ें।
____ आगे चलने पर इधर-उधर बिखरे हुए आभूषण तथा वायु से प्रकंपित पीले रंग का क्षौम वस्त्र दिखायी दिया ।
गोमुख-चारस्वामी ! जब यह विद्याधर निश्चित भाव से बैठा हुआ था तो किसी शत्रु ने उसपर आक्रमण किया। भूमिगोचरी होने के कारण उसकी भार्या किसी प्रकार का प्रतिकार करने में असमर्थ थी ।
चारुदत्त ने मरुभूति को क्षौम वस्त्र, आभूषण, चर्मरत्न और खड्ग उठाकर ले चलने को कहा जिससे कि विद्याधर की वस्तुएँ उसे वापिस लौटाई जा सकें।
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