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उनमें से एक चोर मांस लेकर वृक्ष पर चढ़ा । उसने चारों तरफ देखा तो एक औरत को बैठे हुए पाया ।
औरत ने उसे रुपये निकालकर दिखलाये । रुपयों के लालच से चोर ज्योंही उसके पास पहुँचा, औरत ने जोर से अपने दांतों से उसे काट लिया ।
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चोर डरकर भागा । वह कहने लगा - अरे ! यह तो वही है ! नाइन चोरों की चोरी का सब माल लेकर चंपत हुई । '
नूपुरपंडिता
कोई सेठानी अपने पति के रहते हुए भी किसी अन्य पुरुष से प्रेम करने लगी थी ।
स्त्री के श्वसुर ने अपने बेटे से यह बात कही, लेकिन उसे विश्वास न हुआ ।
१. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५२३ । कथासरित्सागर ( २, ५, ९२ - १११ ) में सिद्धि सेविका का रूप धारण कर उत्तरापथ से आये हुए एक वणिक्पुत्रक के यहाँ रहने लगी । एक दिन वह उसका सारा सोना लेकर चलती बनी । रास्ते में एक डोम मिला । सिद्धि का धन छीनने के लिए डोम ने उसका पीछा किया।
सिद्धि ने एक पीपल के पेड़ के नीचे पहुँचकर बड़ी दीनतापूर्वक उससे निवेदन किया-आज मैं अपने पति से कलह करके घर से भाग आई हूँ । मैं मरना चाहती हूँ, तुम मेरे लिए फांसी का फंदा बांध दो ।
डोम ने वृक्ष से फंदा बांधकर लटका दिया ।
सिद्धिकरी ने डोम से कहा- इस फंदे में गला कैसे फंसाया जाता है ? जरा गला फँसाकर तो दिखाओ ।
डोम ने पैरों के नीचे ढोलक रखकर अपने गले को फंदे में डालकर दिखा दिया । लेकिन सिद्धिकरी ने झट से डोम के पैरों के नींचे से ढोलक हटा ली और वह फंदे में लटक कर मर गया ।
उस समय अपनी स्त्री को ढूँढता हुआ अपने नौकर के साथ उसका पति वहाँ
आया ।
उसे देख वह वृक्ष के पत्तों में छिपकर बैठ गयी ।
उसका नौकर वृक्ष पर चढ़कर उसे ढूँढ़ने लगा ।
सिद्धिकरी ने उसे देखकर कहा— आओ, मेरे पास आओ । तुम बहुत सुन्दर हो तुम पर मैं मोहित हूँ । लो, यह भी ले लो और मेरे शरीर का उपभोग करो । यह कहकर, ज्योंही वह नौकर उसके पास आया, उसका चुंबन लेने के बहाने, सिद्धिकरी ने उसकी जीभ काट ली । उसका पति अपने नौकर के साथ वहाँ से जल्दी से भाग गया। सिद्धिकरी वृक्ष से नीचे उतर धन की गठरी उठाकर चंपत हुई !
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