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के लिए गमन करते हैं। वे श्रमणदीक्षा भी स्वीकार करते हैं । तीर्थंकर ऋषभदेव को विद्याधरों का पालक बताया गया है । अनेक विद्याएँ उन्होंने विद्याधरों को प्रदान की।
मानवों से साथ विद्याधरों के सहानुभूतिपूर्ण सम्बन्ध बताये गये हैं। दोनों में सौहार्द था और शादी-विवाह तक होते थे। यदि कोई विद्याधर किसी अनगार (जैनसाधु), या दम्पति को कष्ट पहुँचाये अथवा किसी परयुवति का जबर्दस्ती से अपहरण करे तो उसके विद्या से भ्रष्ट हो जाने की आशंका रहती थी। विद्याधरगण जब धरण नामक नागेंद्र का कोप शान्त करने उसके पास पहुंचे तो धरण ने उन्हें फटकारते हुए कहा- "देखो, आज से विद्याओं के सिद्ध करने से ही वे तुम्हारे वश में होंगी । लेकिन यदि विद्यासिद्ध होने पर जिनगृह, अनगार अथवा किसी दम्पति का अपराध करोगे तो विद्याओं से भ्रष्ट हो जाओगे। इस विज्जुदाढ़ नामक विद्याधर नरेश के वंश में पुरुषों को महाविद्याएँ सिद्ध नहीं होंगी, स्त्रियों को भी सोपसर्ग और दुखपूर्वक सिद्ध होंगी अथवा देव, साधु और महापुरुष के दर्शन से सुखपूर्वक सिद्ध हो सकेंगी।
कथा-प्रसंगों की समानता
१ कोक्कास बढई (अ) वसुदेव हिंडी : ताम्रलिप्ति में धनद नामक बढ़ई । पुत्रोत्पत्ति । दरिद्रता के कारण माता-पिता की मृत्यु; धनपति सार्थवाह के घर पुत्र का पालन । कंडिकशाला में कुक्कुस ( अथवा कुकुस) भक्षण करने के कारण कोक्कास नाम । धनपति सार्थवाह के पुत्र धनवसू का यवन देश की यात्रा के लिए यानपात्र सज्जित । कोक्कास भी साथ में । यवनदेश पहुँचकर व्यापार। कोक्कास पडोस के एक बढ़ई के घर दिन व्यतीत करता । अपने पुत्रों को वह अनेक प्रकार के शिल्प कर्म की शिक्षा देता लेकिन वे न सीखते । कोक्कास बीच-बीच में उनकी सहायता करता । आचार्य ने कोक्कास को काष्टकर्म की शिक्षा दी। १. सर्प से दष्ट सामदत्ता ने विद्याधर युगल के स्पर्श मात्र से चेतना प्राप्त की।
वसुदेवहिंडी पृ० ४७ २. वही. पृ. २६४, २२७ । कथासरित्सागर में अपनी विद्या की शेखी बघारने के कारण विद्याभ्रष्ट हुए जीमूतवाहन की कथा आती है । भरहुत के शिलालेखों (२०९ में विद्याधरों का उल्लेख है। विद्या और बिद्याधरों के लिये देखिए, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज. पृ० ३४३-५२, कुवलयमाला २१७, २१८, पृ० १३१-३२, कुक्कुस, कुक्कस कुक्कास, कोक्कस, कोकस, कोक्कास, कोकास कोक्कोस और कोक्कास पाठान्तर है । बृहत्कथाश्लोकसंग्रह में पुक्कस ।
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