Book Title: Prakrit Jain Katha Sahitya
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 141
________________ १३२ स्वयं नरवाहनदत्त ने मदनमंजुका के पास जाकर उसे ढाढ़स बंधाया और कहा कि राजकुमार स्वयं शीघ्र ही उपस्थित हो उसे प्रणाम करेगा । नरवानदत्त कुमारवाटिका में पहुँच वहाँ से उच्छिष्ट मोदक' आदि लेकर लौटा । उससे कहा कि राजकुमार ने अपने हाथ के मोदक उसके लिए भेजे हैं। लेकिन मदनमंजुका को विश्वास न हुआ । मुद्रिकालतिका ने नरवाहनदत्त से कहा कि महानागरक होकर भी आप उस बिचारी को ठगना चाहते हैं !" मदनमंजुकालाभ नामक ११ वें सर्ग में मदनमंजुका का राजकुमार के साथ मिलाप हो जाता है। ४. श्रेष्ठीपुत्र की कथा (अ) वसुदेवहिंडी : चारुदत्त की कथा : श्रमणोपासक भानू नामक श्रेष्ठी की भार्या का नाम भद्रा था। उसके कोई संतान नहीं थी। एक बार आकाशचारी चारु नामक अनगार का आगमन हुआ। भद्रा ने हाथ जोड़कर विनय की महाराज ! हम लोगों के धन की कमी नहीं, लेकिन उसका भोगने वाला कोई पुत्र नहीं है। समय व्यतीत होने पर भद्रा ने पुत्र को जन्म दिया । चारु मुनि के कथन से वह पैदा हुआ था, इसलिए उसका नाम रक्खा गया चारुदत्त । चारुदत्त बड़ा हुआ । उसके पाँच मित्र थे-हरिशिख, वराह, गोमुख, तपंतक और मरुभूतिक । उसने कलाओं की शिक्षा ग्रहण की। मित्रों के साथ वह समय व्यतीत करने लगा। एक बार कौमुदी महोत्सव के समय श्रेष्ठीपुत्र चारुदत्त हरिशिख, वराह, गोमुख, तपंतक और मरुभूति नामक अपने मित्रों को लेकर अंगमंदिर उद्यान में पहुँचा । वहाँ से सब रजतवालुका नदी के किनारे आये । मरुभूति ने नदी में उतर कर चारुदत्त से कहा—तुम क्यों नहीं आते ? क्यों विलंब कर रहे हो ? गोमुख ने उत्तर दिया-वैद्यों का कहना है कि रास्ता चलकर एकदम नदी के जल में प्रवेश नहीं करना चाहिए । सब लोग कमलपत्रों को तोड़कर स्वच्छन्द भाव से पत्रच्छेद्य से क्रीड़ा करने लगे । क्रीड़ा करते-करते दूसरे नदी स्त्रोत पर १. वसुदेवहिंडी में 'भुत्तसेसे मोदके' पाठ है । २. १०. ३८-२७४ ३. ऐस. ऐन. दासगुप्ता ने मदनमंजुका के प्रेम को उत्कृष्ट कोटिका बताते हुए उसकी तुलना मृच्छकटिक की वसन्तसेना के साथ की है। हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर, क्लासिक पीरियड, पृ० १०० ५. बृहत्कथा लोकसंग्रह १८-४-१० के अनुसार, सानुदास चंपा निवासी मित्रवर्मा नामक वणिक और उसकी भार्या मित्रवती का पुत्र था । एक दिन सानु नामक दिगम्बरमुनि भिक्षा के लिए आये । उन्होंने ऋषभभाषित धर्म का उपदेश दिया। भावी पुत्र के उत्पन्न होने की उन्होंने भविष्यवाणी की । सानु मुनि के आदेश से पुत्रोत्पत्ति होने के कारण पुत्र का नाम सानुदास रखा । वसुदेवहिंडी पृ० १३३-३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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