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हिरण्या बचपन से ही शबकुमार को दे दी गई थी। क्रम से उसने यौवनावस्था को प्राप्त किया । वासुदेव कृष्ण ने कालिन्दसेना को उसकी कन्या को उसके अभ्यन्तरोपस्थान (गर्भगृह) में भेजने का आदेश दिया । एक बार वह अपनी माता के साथ चली । माता के मना करने पर भी न मानी । गर्भगृह में पहुँच सुहिरण्या ने गले में फाँसी लगा ली । दैवयोग से भोगमालिनी वहाँ उपस्थित थी । उसने उसका रज्जुपास हटा दिया। जब वह होश में आई तो भोगमालिनी ने आत्मघात करने का कारण जानना चाहा । सुहिरण्या ने उत्तर दिया- "बाल्यावस्था से ही मैं कुमार को दे दी गई हूँ । बड़ी होने पर देवोपस्थान में गये हुए कुमार को कभी-कभी देख लेती थी। लेकिन अब तो उनके दर्शन भी दुर्लभ हो गये हैं । " ये सब बातें भोगमालिनी ने उसकी माँ से कहीं । उसने मित्रों, हस्त्यारोहकों और लेखकों के साथ मंत्रणा की । तत्पश्चात् रथिक, महावत और लेखकों के साथ शंब के विश्वासपात्र बुद्धिसेन को कुमार के पास भेजा गया । बुद्धिसेन ने कुमार को समझाया कि वह सुहिरण्या को गणिका की पुत्री न समझे, और स्वीकार करने में कोई दोष नहीं है । '
गणिकाओं की उत्पत्ति - पूर्वकाल में भरत मंडलपति राजा था । वह एकपत्नीव्रत था। उसके सामंतों ने इसके लिए अनेक कन्याएँ प्रेषित कीं । महारानी के साथ प्रासाद पर बैठे हुए राजा ने उन्हें देखा | महारानी ने प्रश्न कियायह किसकी सेना चली आ रही है ? राजा ने उत्तर दिया- मेरे सामन्तोंने मेरे लिए कन्याएँ भेजी हैं। महारानी ने सोचा, अनागत की ही चिकित्सा करना ठीक है, कहीं राजा इनमें से किसी से प्रेम न करने लगे ! उसने कहा— स्वामि ! प्रासाद से गिरकर मैं प्राणों का त्याग कर रही हूँ । यदि इनमें से किसी ने घर में पैर रखा तो मैं शोकाग्नि में भस्म हो जाऊँगी । राजा ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो घर में इनका प्रवेश न होगा । महारानी ने कहा-बाहर सभामंडप में ये आपकी सेवा में उपस्थित रह सकती हैं । क्रमशः उन्हें गणों के सुपुर्द कर दिया गया। तब से ये गणिकाएँ कही जाने लगी ।'
(आ) बृहत्थकथाश्लोकसंग्रह : कलिंगसेना गणिका की कन्या मदनमंजुका : कलिंगसेना ने राजा को दूर से देखकर नमस्कार किया । राजा ने उसे आमंत्रित किया। पर्यंक के मध्य में आकर वह बैठ गयी । सुन्दर वस्त्राभूषणों से वह १. तुलनीय बृहत्कथाश्लोकसंग्रह ११, ८६ ।
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