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रूप में चित्रित किया गया है। कुंभकर्ण के विषय में उल्लेख है कि वह छह मास तक सोता था और भूख लगने पर हाथी भैंस आदि को चटकर जाता था । इन्द्र को पराजित कर रावण उसे श्रृंखला में बांधकर लंका में लाया था । जैन विद्वानों ने इस प्रकार की घटनाओं को बुद्धि द्वारा अग्राह्य बताकर असंभव घोषित किया ।'
___हरिभद्रसूरि का धूर्ताख्यान भी महाभारत, रामायण और पुराणों की अतिरंजित कथाओं पर व्यंग्यस्वरूप लिखा गया है। मूलश्री (मूलदेव), कंडरीक, एलाषाढ़, शश और खंडपाणा नामक पांच धूर्तशिरोमणि उज्जैनी के उद्यान में बैठे गपशप कर रहे हैं । पांचों में शर्त लगी कि सब अपने-अपने अनुभव सुनायें और जो इन अनुभवों पर विश्वास न करे, वह सबको भोजन दे, तथा जो अपने कथन को रामायण, और पुराणों के कथन से प्रमाणित कर दे, वह धूर्ती का शिरोमणि माना जाये ।
सभी ने अपने-अपने आख्यान सुनाये, रामायण, महाभारत और पुराणों के प्रमाण देकर सिद्ध किया । खण्डपाणा ने अपनी चतुराई से एक सेठ से रत्नजटित मुद्रिका प्राप्त की और उसे बेचकर सबको भोजन खिलाया।
प्रवचन-उड्डाह होने पर उसकी रक्षा करने के लिए हिंगुशिव नाम की एक कथा देखिए
किसी नगर में कोई माली बगीचे में से पुष्प तोड़ कर उन्हें बेचने के लिए मार्ग पर बैठ गया । इतने में उसे टट्टी की हाजत हुई । उसने जल्दी-जल्दी टट्टी फिरकर उसे पुष्पों के ढेर से ढंक दिया। लोगों ने पूछा-यहाँ पुष्प क्यों डाल रक्खे हैं । माली ने उत्तर दिया-मुझे प्रेत-बाधा हो गई है । हिंगुशिव की मनौती करने के लिए उसे पुष्प चढ़ाये हैं।
आश्चर्य नहीं कि जब ब्राह्मणों की अतिरञ्जित कल्पनाओं से पूर्ण पौराणिक कथाओं से पाठकों का मन ऊब रहा था, पौराणिक आख्यानों को बुद्धिगम्य बना१. देखिए, विमलमूरि, पउमचरिय की प्रस्तावना।
निशीथभाष्य (२९४-९६) और चूर्णी की पीठिका में सस, एलासाढ, मूलदेव और खंडा
नाम के चार धूर्ती की कथा दी है । हरिभद्रसूरि ने इसी को धूर्ताख्यान में विकसित किया । ३. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० ४७ । ढोंढ शिवा के कथानक के लिए देखिए, आवश्यक चूर्णी,
पृ. ३१२; बृहत्कल्पभाष्य ५, ५९२८ ।
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