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द्वीप में पहुँचा । क्षुधा और तृषा से व्याकुल हुआ जब वह इधर-उधर परिभ्रमण कर रहा था तो उसे एक पुरुष मिला। वह भी जहाज फटने के कारण वहाँ आकर उतरा था। दोनों भोजन-पानी की खोज में घूमने लगे । इतने में वहाँ एक और आदमी दिखाई दिया । उसकी भी यही दशा थी। तीनों में मित्रता हो गयी।
उन्होंने एक ऊँचे वृक्ष पर वृक्ष की छाल की ध्वजा बनाकर लटका दी। यह ध्वजा यात्रियों के जहाज फट जाने का चिह्न था। इसका मतलब था कि यदि कोई पोतवणिक् उस मार्ग से गुजरे तो उस द्वीपवासी मार्गभ्रष्ट पुरुषों को वहाँ से निकालकर ले जाने में सहायता करे ।'
तीनों पुरुष भोजन की खोज करते-करते इधर-उधर घूमते-फिरते रहे, लेकिन कोई फलवाला वृक्ष उन्हें दिखायी न दिया ।
कुछ समय बाद उन्हें घर के आकार के बने हुए तीन कुण्ड दिखायी पड़े। प्रत्येक कुण्ड में काकोदुंबरी का एक-एक वृक्ष लगा हुआ था। तीनों ने उन कुण्डों को बांट लिया । लेकिन इन वृक्षों पर फल नहीं थे।
कुछ समय बाद उनपर कच्चे और कर्कश फल लगे । पक्षियों से उन वृक्षों की वे रखवाली करने लगे।
इस बीच में किसी पोतवणिक् ने वृक्ष पर लगी हुई ध्वजा को देखा और अपने नाविकों को कुडंग द्वीपवासी उन पुरुषों को लाने के लिए भेजा।
पहले पुरुष ने उत्तर दिया-यहाँ हमें दख ही कौनसा है ? यह देखो हमारा घर । हमारे वृक्ष पर फल लग गये हैं। भविष्य में भी इसपर फल लगा करेंगे । वर्षा ऋतु में हमें भोजन-पान का कोई कष्ट न होगा । अतएव यहाँ से जाने की इच्छा मेरी नहीं है।
दूसरे पुरुष ने भी वहाँ से जाने की अनिच्छा व्यक्त की । उसने कहा कुछ समय बाद वह चल सकता है।
तीसरे पुरुष ने आगन्तुकों का स्वागत किया। वह उनके जहाज पर सवार हो, घर पहुँच अपने सगे-संबंधियों से जा मिला। . १. बुधस्वामी के बृहत्कथाश्लोकसंग्रह (१८. ३१५-१६) में भिन्न पोत होने पर, नाविकों
का ध्यान आकृष्ट करने के लिए वृक्ष पर ध्वजा लगाने और अग्नि जलाने का उल्लेख है। कुवलयमाला, १६६, पृ० ८९ । इस आख्यान द्वारा यहाँ तीन प्रकार के जीवों की ओर लक्ष्य किया गया है-अभव्य, कालभव्य और तत्क्षणभव्य। ये तीनों संयोगवश मनुष्यजन्म रूपी एक द्वीप में पहुँच गये । यहाँ रहने के लिए उन्हें घर मिल गया जिसमें काकोदुंबरी रूपी स्त्रियों का निवास था। धर्मोपदेशकों के रूप में आये हुए नाविक उनकी रक्षा करना चाहते हैं। पहला पुरुष जाने की अनिच्छा व्यक्त करता है। दूसरा कहता है कि कुछ समय बाद वह चलेगा । तीसरा फौरन उनके साथ चलने को तैयार हो जाता है ।
अन्यत्र (पृ. ४५-८०) क्रोध, मान,माया, लोभ और मोह-इन पाँच महामल्लों के उदाहरण स्वरूप क्रोध के आख्यान में चंडसोम, मान के आख्यान में मानभट, माया के आख्यान में मायादित्य, लोभ के आख्यान में लोभदेव और मोह के आख्यान में मोहदत्त की कथाएँ दी गयी हैं। पात्रों के नाम ध्यान देने योग्य हैं।
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