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स्वेत वस्त्र पदमासरिग लीग, करहिं पालवरिण बाजहि वीण।
आगमु जागि देइ बहुमती, पुणु परणवौं देवी सुरस्वती ॥ ३ ॥ जिण सासगा जो विघन हरेइ, हाथि लकुटि ले भागे होइ । भवियह दुरिय हरई असरालु, आगिवाणि परणवउ खितपालु ॥ ४ ॥ संवत् तेरहसइ होइ गए, ऊपरि अधिक एयारह भए । भादव सुदि पंचमि जो सारु, स्वाति नक्षत्रु सनीश्चरु बार ॥ ५ ॥ बस्तुबंध:
- णविवि जिणघर सुद्ध सुपवित्तु नेमीसरू गुणनिलउ, स्याम वर्गु सिवएवि नंदणु । चउतीसह अइराइ सहिउ, कमकणी घरण मारण मद्दगु । हरिवंसह कुल तिलउ, निजिय नाह भवरणासु ।
सासइ सुह पावहं हरण, केवलणारण पसु ? ॥ ६॥ विभिन्न भाषाओं में प्रद्य म्न के जीवन से सम्बन्धित रचनायें:
__ प्रद्य म्न कुमार जैनों के १६६ पुण्य पुरुषों में से एक हैं। इनकी गणना चौबीस कामदेवों ( अतिशय रूपवान ) में की गई है। यह नत्र में नारायणा श्री कृष्ण के पुत्र थे ! यह चरमशरीरी ( उसी जन्म से मोक्ष जाने वाले ) थे। इनका चरित्र अनेक विशेषताओं को लिये हुए होने के कारण आकर्षणों से भरा पड़ा है । मनुष्य का उत्थान और पतन एवं मानव-वृदय की निर्वलताओं का चित्रण इस चरित्र में बहुत ही खूबी से हुआ है और यही कारण है कि जैन बाडमय में प्रा म्न के चरित्र का महत्वपूर्ण स्थान है । न केवल पुराणों में ही प्रसंगानुसार प्रद्युम्न का चरित्र आया है अपितु अनेक कवियों ने स्वतन्त्र रूप से भी इसे अपनी रचना का विषय बनाया है।
प्रद्युम्न का जीवन चरित्र सर्व प्रथम जिनसेनाचार्य कृत 'हरिवंश पुराण' के ४७ चे सर्ग के २० ३ पदा से ४८ वें सर्ग के ३१ वें पद्य तक मिलता है । फिर गुणभद्र के उत्तर पुराण में, स्वयम्भू कृत रिटुणेमिचरिउ (८वीं शताम्दी ) में, पुष्पदन्त के महापुराण ( ६-१० वीं शताब्दी ) में तथा धवल . के क्रियंश पुराण ( १० वीं शताब्दी ) में बद्द प्राप्त होता है। इन रचनाओं