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कंथु परह चपकवइ नरिद, निर्जर कर्म भयो सिव इन्द । जोति सरुपु निरंजण कारु, गजपुर नयरी लेवि अवतारु । ७ ॥ मल्लिनाथ पंचेन्द्री मल्ल, चउरासो लक्ष कियो निसल्ल । जउरे मुनिसुन्नत मुनि इंद, मन मर्दन वीसवे जिनंद ॥ ८ ॥ जउरे नामि गुण ग्यांन गंभीर, तीन गुपति बर साहसघोर । निलोपल लंछन जिनराज, भवियण वहु परिसारइ काज !! ६ ॥ सोरीपुरि उपनउ वरवीरु, जादव कुल मंडण गंभीरु । जाउरे जिगवर नेमि जिणंद, रतिपति राइ जिरग पूनिमचंदु ॥१०॥ आससेन नृप नंदनवीर, दृष्ट विधन संतोषग धीर । जाउरे जिरावर पास जिद, सिरफन छत्र दीयो धरणिद ॥११॥ मेर सिखर पूरव दिसि जाइ, इन्द्र सुर त्रिभुवन राई । कंचन कलस भरे जल क्षीर, ढालहि सीस जिणेसर वोर ॥१२॥
उक्त ४ प्रतियों के अतिरितः जब नवम्बर सन् ५८ के प्रथम सप्ताह में श्री नाइटानी जयपुर आये तो उन्होंने 'प्रद्युम्न-चरित' की एक और प्रति का जिक्र किया और उसे हमारे पास भेज दिया। यद्यपि इस प्रति का पाठ भेद आदि में अधिक उपयोग नहीं किया जा सका, किन्तु फिर भी कुछ सन्देहास्पद पाठ इस प्रति से स्पष्ट हो गये। यह प्रति भी प्राचीन है तथा संवत् १६६६ भावण बुदी । श्रादित्यवार को लिखी हुई है । प्रति में २७ पत्र हैं तथा उनका १०३ ४४३ इञ्च का आकार है। इसमें पद्य संख्या ८१ है। इस प्रति की विशेषता यह है कि इसमें रचना काल सम्बत् १३११ भादवा सुदी५ दिया हुआ है। इसके अतिरिक्त मूल प्रति के प्रारम्भ में जो विस्तृत स्तुति खण्ड है वह इस प्रति में नहीं है। प्रति के प्रारम्भ में ६ पद्य निम्न प्रकार है। अठदल कमल सरोवरि वासु, कासमीरि पुरिय उ निबासु । हंसि चडी करि वीणा लेइ, कवि सधारु सरस पणवेइ ॥१॥ पणमावती दंडु करि लेइ, ज्वालामुखी चक्केसरि देइ । अंबाइरिए रोहण जो सारु, सासरण देवि नवइ साधारु ॥२॥