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प्रस्तावना
आचार्य हरिभद्रसूरि की समदर्शिता :
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भारतीय परंपरा में आचार्य हरिभद्रसूरि को समदर्शी के रूप में जाना जाता है । आचार्य हरिभद्रसूरि (वि. सं. ७५७-८२७) के जीवन एवं लेखन के विषय में पर्याप्त लिखा गया है । अत: यहाँ विस्तार से लिखना आवश्यक नहीं है। उन्होंने जैनागमों पर अनेक टीकाएँ लिखी, जैनागमों के विविध विषयों को लेकर अनेक प्रकरण, कथाग्रन्थ, दर्शन, योग, ज्योतिष एवं स्तुति ग्रंथ प्राकृत एवं संस्कृत दोनो भाषाओं में लिखे । योगदृष्टि समुच्चय एवं योगबिन्दु, योगशतक एवं योगविंशिका जैसे महत्त्वपूर्ण जैनयोग ग्रंथों की रचना की है। प्रस्तुत योगबिन्दु ग्रंथ जैनयोग का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें अन्य दर्शनों के साथ तुलना एवं समन्वयात्मकभाव दृष्टि गोचर होती है। इसमें उनके विचारों में उदारता दिखाई देती है। आचार्य हरिभद्रसूरि रचित अनेक ग्रंथों में अन्यान्य शास्त्रों, दर्शनों एवं धर्मों की प्रचुर मात्रा में चर्चा प्राप्त होती है । जहाँ-जहाँ आचार्यश्री ने अन्य शास्त्रों से उनके वचनों को उद्धृत किया है सभी जगह उन्होंने बहुत ही बहुमान एवं सन्मानपूर्वक ही उद्धृत किया है। यदि किसी दर्शन के मत का या सिद्धान्त का खंडन भी करना हो तो विवेकपूर्ण ढंग से ही उनकी समालोचना की है। शास्त्रवार्ता समुच्चय में तो विभिन्न दर्शनों के मतों का समन्वय करने की भी पूरी कोशिश की गई है। सभी दर्शनों के सिद्धान्तों का जैनदर्शन के साथ समन्वय करके अविरोध दर्शाया गया है और जैनदर्शन के अनेकान्तवाद का स्थापन किया गया है । यह आचार्य हरिभद्रसूरि की समन्वय करने की अद्भुत दृष्टि का परिचायक है । वैसी ही शैली योग के उनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथों में भी पाई जाती है। भारत में अनेकविध योग परंपरायें प्रचलित हैं उन सभी के मार्ग भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं, साधना पद्धति भी भिन्न-भिन्न दिखाई देती है, किन्तु गन्तव्य एक ही है और वह है मोक्ष। मोक्ष की प्राप्ति हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार का पुरुषार्थ किया जाता है अत: मार्ग भिन्न होते हुए भी सभी का एक ही गन्तव्य होने के कारण अविरोध है । यह उनके सहज अभिव्यक्ति की अनुपम उलब्धि है ।
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योगबिन्दु ग्रन्थ के प्रारंभ में ही इस बात की स्पष्टता करते हुए कहते हैं कि माध्यस्थ योगवेत्ताओं के लिए महोदय अर्थात् मोक्ष देने वाले सभी योगशास्त्रों में पारमार्थिक अविरोध स्थापित करने वाला प्रस्तुत योगबिन्दु ग्रंथ है । इस दृष्टि से यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है ।