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अन्य दर्शनकार कर्मदल को भवबीज कहते हैं
जैसे-जैसे भावशुद्धि होती है, वैसे-वैसे कर्मदल कम से कम होते हैं चरम पुद्गलपरावर्त में होता बंध बड़े पाप का कारण होता नहीं है मुक्तिमार्ग नजदीक आने पर प्रमोद होता है
अपुनर्बंधक का स्वरूप
अपुनर्बंधक के अतिरिक्त अन्य जीवों द्वारा होती पूर्वसेवा कैसी होती है अपुनर्बंधक के बारे में अन्य दर्शनकारों के मत ज्ञानपूर्वक होती पूर्वसेवा का स्वरूप
है
प्रकृति से आत्मा में शांत उद्दात्तत्त्व रहा हुआ विरुद्ध प्रकृति वालों को विरुद्ध भाव आता है
भोग में वास्तविक सुख की इच्छा झंझावात के जल जैसी है
विषय के भोगीओं को सुख नहीं होता
दृष्टांत को दृष्टांतिक के साथ घटित किया है।
शुभ प्रज्ञावंत महानुभाव कैसी प्रवृत्ति करते हैं
प्रकृति के भेद से आत्मस्वरूप में भेद होता नहीं है
आत्मा तथा प्रकृति के स्वभाव से होता परिणाम
अनादिकाल की परंपरा से सिद्ध कर्ममल आत्मा का बंधन है
अन्य मतवालों को भी इसी प्रकार सर्व पदार्थों की प्राप्ति सम्भव है आत्मा तथा कर्म का सम्बंध सिद्ध होने से अब क्या करना
पूर्वसेवा से मुक्त जीव योगमुक्त होता है ऐसा गोपेन्द्र पंडित और अन्य विद्वान भी मानते हैं
आचार्य हरिभद्रसूरिजी द्वारा योग की व्याख्या
द्रव्ययोग बताकर भावयोग का प्रारंभ ग्रंथीभेद वालों को होता है ग्रंथभेद करने वाला उत्तम भाव को नहीं देख सकता ऐसी शंका का समाधान
क्रियावादी की शंका कि क्रिया ही फल देनेवाली है, अकेले ज्ञान से फल नहीं मिलता, का समाधान
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