Book Title: Prachin Stavanavli 23 Parshwanath
Author(s): Hasmukhbhai Chudgar
Publisher: Hasmukhbhai Chudgar

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Page 77
________________ योगबिंदु २५ विवेचन : जिस वचन से बताया गया विचार, व हकीकत या कोई अर्थ अर्थात् पदार्थ ठीक हो याने इन्द्रिय प्रत्यक्ष द्वारा बाधित न हो - इन्द्रिय या मन, जिस पदार्थ का इनकार न कर सके, ऐसा कोई इन्द्रियगम्य पदार्थ व मनोगम्य पदार्थ दृष्ट पदार्थ कहा जाता है । याने अनुभव गम्य प्रत्यक्ष जैसे घट, पट, घर इत्यादि । जो पदार्थ अनुमान से किसी प्रकार के चिह्न निशान से जाना जाता है, ऐसे परोक्ष पदार्थ को अदृष्ट कहते हैं जैसे परलोक, मोक्ष, आत्मा इत्यादि अतीन्द्रिय- जो इन्द्रियों या मन द्वारा नहीं जाने जा सकते। ऐसे दृष्ट व अदृष्टपदार्थ की ओर हमारी प्रवृत्ति प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण में, बाधा - विरोध न आता हो तभी हो सकती है। प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण से प्रमाणित वचनों से प्रवृत्ति करने से ही, अदृष्ट को पा सकते हैं और इष्ट परिणाम मिल सकता है तथा प्रवृत्ति करने वाले का श्रम सफल हो सकता है अन्यथा निष्फल है, जो किसी को भी इष्ट नहीं है ॥२५॥ अतोऽन्यथा प्रवृत्तौ तु स्यात्साधुत्वाद्यनिश्चितम् । वस्तुतत्त्वस्य हन्तैवं सर्वमेवासमञ्जसम् ॥२६॥ ? अर्थ : इससे अन्यथा (पूर्वोक्त सिद्धान्तविरुद्ध) प्रवृत्ति करने में तो वस्तुतत्त्व की यथार्थता (सत्यता साधुता) ही अनिश्चित हो जाती है और ऐसा होने से सब कुछ असमञ्जस - अव्यवस्थित हो जाता है ||२६|| विवेचन : दृष्ट विरुद्ध होने पर भी सत्य माना जाय तो सत्य क्या है ? और असत्य क्या है ? इसका विवेक ही न रहेगा - अव्यवस्था हो जायगी । वस्तु स्वरूप को समझे बिना, देखादेखी मोक्षार्थी-मुमुक्षु, अधर्म को भी धर्म समझ कर प्रवृत्ति करेगा । फिर तो वह, यह मार्ग सत्य है ? या अन्यमार्ग सत्य है ? इसका निश्चय ही नहीं कर पायेगा । इसलिये मोक्षमार्गरूप - योगतत्त्वआत्मा - कर्म उसके लक्षण, परिणाम आदि का यथार्थ निश्चय किये बिना ही जो स्वछन्द प्रवृत्ति होती है, वह सब इहलोक और परलोक के लिये अकल्याणकारी होती है । क्योंकि दृष्ट द्वारा ही अदृष्ट का अनुमान होता है । अगर दृष्टविरोध होने पर भी अदृष्ट में कोई बाधा - विरोध न माने तो अदृष्ट का कोई नियामक ही नहीं रहेगा और शास्त्र में आने वाले असंगत वचनों को भी मानना पड़ेगा । इस प्रकार सारी व्यवस्था बिगड़ जाती है, अतः दृष्ट विरुद्ध अदृष्ट वचन नहीं मानना चाहिये तभी सब व्यवस्था घटित होती है ||२६|| तद् दृष्टाद्यनुसारेण, वस्तुतत्त्वव्यपेक्षया । तथा तथोक्तभेदेऽपि, साध्वी तत्त्वव्यवस्थितिः ॥२७॥ अर्थ : इसलिये दृष्टादि के अनुसार वस्तुतत्त्व की व्यवस्था करने से शास्त्रान्तर में उक्तिभेद होने पर भी तत्त्वव्यवस्था यथार्थ घटित होती है ||२७||

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