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योगबिंदु
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अर्थ : इसमें भी सभी को उन्माद और ग्रहादि के कारण अनुभूतार्थ स्मरण विशेष रूप से नहीं होता ||६०||
विवेचन : जैसे उन्माद - पागलपन से शरीर में कोई असाध्य रोग होने से; सन्निपात से; स्मरणशक्ति नष्ट हो जाने से; भूतप्रेत, पिशाच आदि से जकड़ जाने पर; इसी प्रकार के अन्य बाह्य और आन्तरिक-मानसिक कारणों से व्यक्ति 'मैं कहाँ से आया', "कौन हूँ" आदि इसी जन्म की अनुभूत स्मृतियों को खो बैठता हैं । उसकी स्मरणशक्ति इतनी कमज़ोर हो जाती है कि उसे कुछ भी पूर्व की बात याद नहीं रहती । इसी प्रकार ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय कर्म के तीव्र उदय से, क्षयोपशम अल्प होने से पूर्व जन्म सम्बन्धी स्मृति " मैं कहाँ से आया", "किस कारण से आया", "कौन था " ऐसा विशेष बोध (पूर्वजन्म सम्बन्धी ज्ञान ) नहीं होता । किसी विरली महान् आत्मा को ही पूर्वभव सम्बन्धी जातिस्मरण ज्ञान होता है, परन्तु जगत के सभी प्राणियों को ऐसा ज्ञान नहीं होता ||६०॥
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पूर्वभव सम्बन्धी सामान्य ज्ञान जो प्राणीमात्र को उपलब्ध होता है अब उसे ग्रंथकार कहते है :
सामान्येन तु सर्वेषां स्तनवृत्त्यादिचिह्नितम् ।
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अभ्यासातिशयात् स्वप्नवृत्तितुल्यं व्यवस्थितम् ॥ ६१॥
अर्थ : सर्वप्राणियों को स्तनपान का स्मरण सामान्यरूप से ( पूर्व भय के) अतिशय अभ्यास के कारण होता है । यह बात स्वप्नवृत्ति के तुल्य है ॥ ६१ ॥
विवेचन : जन्म लेते ही बालक माता के स्तनपान की जो क्रिया करता है, वह क्रिया यहाँ पर तो किसी ने सिखाई नहीं । बिना सीखे कुदरती उसको कौन सिखाता है ? यह है पूर्वजन्म के संस्कारों की निशानी । दो ढाई महीने के अबोध शिशु को सोया हुआ देखें । सैकड़ों आकृतियाँ उसके चहेरे पर उपलब्ध होती है, कभी सोया - सोया हंसता है; कभी रोने जैसी आकृति बनाता है; कभी गुस्से - क्रोध की आकृति बनती है। पुराने लोग कहते हैं बच्चों को पूर्वजन्म के अच्छे, बुरे स्मरण-संस्कारों से ऐसा होता हैं । अन्दर - अन्दर रोना, हंसना आदि सभी पूर्वजन्म के संस्कारों की निशानियाँ है । जब वह कुछ बड़ा होता है तब रंग बिरंगें सुन्दर खिलौनों को पकड़ने का प्रयत्न, उसे ग्रहण करने की उसकी आकांक्षा अनादि संस्कारों का परिणाम है। जिन-जिन वस्तुओं का अत्यन्त परिचय हो; जो वस्तु अधिक प्रिय हो; इष्ट वस्तु का बारम्बार स्मरण करने से ; अतिशय अभ्यास के कारण उन वस्तुओं का बारम्बार भोग-उपभोग करने से व्यक्ति के मानसिक संस्कार इतने गाढे हो जाते हैं कि उसे उन्हीं वस्तुओं के स्वप्न बारम्बार आते हैं, इसी प्रकार पूर्वजन्मों के अतिशय अभ्यास से, जन्म लेते ही बालक अपनी क्षुधानिवृत्ति के लिये स्तनपान करता है, इसलिये स्तनवृत्ति