Book Title: Prachin Stavanavli 23 Parshwanath
Author(s): Hasmukhbhai Chudgar
Publisher: Hasmukhbhai Chudgar

View full book text
Previous | Next

Page 100
________________ योगबिंदु विवेचन : यदि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश रूप मूलसंघात-महामूल समुदाय से अलग स्वतन्त्र आत्मा को नहीं मानते हैं तो योग की महत्ता सिद्ध नहीं होती, सार्थक नहीं होती, इसका समाधान नहीं होता ।। ___पंच-भूतों का स्वभाव जड़ है और आत्मा का स्वभाव चैतन्य है। चार्वाक मानते है कि पांच महाभूत जब मिलते हैं तब आत्मा नाम की शक्ति पैदा हो जाती है और भूतों के बिखर जाने से वह शक्ति भी बिखर जाती है, परन्तु प्रत्येक पदार्थ-भूत में ही जब चैतत्य का अभाव है तो समुदाय में चैतन्य कैसे आ सकता है? अगर रेत में तेल नहीं हों तो लाखों किलो रेत पीलने पर भी तेल का बिन्दु भी निकल सकता है क्या ? अतः मूल में ही चैतन्य नहीं है तो भूतसंघात से चैतन्य कैसे प्रकट हो सकता है ? अगर जीव भूत संघात से ही पैदा होता है तो मरने पर पंचभूत का शरीर विद्यमान होने पर भी चैतन्य की चेष्टा नहीं दिखाई देती, उसका कारण खोजना चाहिये। डॉक्टर कहते हैं कि प्राणरूप पवन अलग हो जाने से मृत्यु हो जाती है, तो धमनियों द्वारा प्राणवायु पूरने से प्राण आने चाहिये, लेकिन नहीं आते, इसलिये जड़ पदार्थ से भिन्न चैतन्य स्वरूपवाला आत्मा अलग स्वतन्त्र पदार्थ है । संसार में सुख, दुःख, कर्मफलों की विचित्रताएँ सभी जीव के ऊपर ही निर्भर है ॥५६॥ अब योगमहात्म्य से प्रकारान्तर से परलोक सिद्धि करते हैं : ब्रह्मचर्येण तपसा, सद्वेदाध्ययनेन च । विद्यामन्त्रविशेषेण, सत्तीर्थासेवनेन च ॥५७॥ पित्रोः सम्यक् उपस्थानाद्, ग्लानभैषज्यदानतः । देवादिशोधनाच्चैव, भवेज्जातिस्मरः पुमान् ॥५८॥ अर्थ : ब्रह्मचर्य से, तपश्चर्या से, सत् शास्त्रों के अध्ययन से, विद्या मंत्रादि विशेष से, सत् तीर्थों के सेवन से, माता-पिता की सम्यक् सेवा-सुश्रुषा करने से, आतुर को औषध दान देने से, देवादि-देवप्रासादादि का जीर्णोद्धार आदि करवाने से भव्यात्माओं को जाति-स्मरण ज्ञान प्राप्त होता है ॥५७-५८॥ विवेचन : उपरोक्त सभी साधन जातिस्मरण ज्ञान (पूर्वजन्म का ज्ञान) को उत्पन्न करने में निमित्त कारण हैं । उपादान-मुख्य कारण, तो इन साधनों के द्वारा हृदय की शुद्धि, विचारों की शुद्धि, भावोल्लास होना, आत्मा के गुणों का विकास होना ही मुख्य है । जब इन साधनों से आत्मा की शुद्धि हो जाती है तभी जाति स्मरण ज्ञान प्राप्त होता है, केवल क्रियामात्र करने से कुछ नहीं होता। ब्रह्मचर्य:- मन, वचन, काया से पांच इन्द्रियों के २३ विषयों का त्याग करना, अनासक्त रहना, शुद्ध ब्रह्मचर्य है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108