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योगबिंदु है और सत्व-रज-तम भी समान ही होते हैं । जिसकी शारीरिक धातु समान हो और गुरु की प्रेरणा हो ऐसे साधक के स्वप्न सत्य फल देने वाले होते हैं । ऐसे स्वप्न देव, गुरु, धर्म की श्रद्धा को बढ़ाने वाले होते हैं। अतः ऐसे स्वप्न को सत्य ही समझना ॥४५॥
स्वप्नमन्त्रप्रयोगाच्च सत्यः स्वप्नोऽभिजायते ।
विद्वज्जनेऽविगानेन सुप्रसिद्धमिदं तथा ॥४६॥ अर्थ : स्वप्न द्वारा प्राप्त मंत्र के प्रयोग से स्वप्न सत्य हो जाता है। यह तथ्य बिना किसी विप्रतिपत्ति-विरोध के विद्वज्जनों में प्रसिद्ध ही है ॥४६॥
विवेचन : स्वप्न में किसी योगी अथवा साधक को मंत्र उपलब्धि हो और वह उसकी धारणा करके विधि पूर्वक उसकी आराधना करें तो उसका फल प्राप्त होता है। विद्वज्जन-पण्डित लोग स्वप्न में प्राप्त हुये मंत्र को स्मृति पूर्वक, आदर-भक्ति सहित, निःसन्देह होकर, श्रद्धापूर्वक जपें तो परम इष्ट लाभ रूप, फल को प्राप्त करते हैं । यह तथ्य सर्वत्र सभी शास्त्रों में प्रसिद्ध हैं । इसमें किसी विद्वान् को कोई विरोध नहीं है ।
अथवा अमुक शुभ स्वप्न को देने वाले मंत्र को गिनने से, उसकी आराधना-जाप करने से इस प्रकार की देवकृपा प्रकट होती है और उससे अच्छे फलदायक स्वप्न आते हैं और थोड़े समय में उसका फल भी मिलता है ॥४६॥
न ह्येतद् भूतमात्रत्वनिमित्तं सत्तं वचः ।
अयोगिनः समध्यक्षं यत्नैवंविधगोचरम् ॥४७॥ अर्थ : यह देवतादर्शनादि भूतमात्र से उत्पन्न होता है – ऐसा कथन असंगत है, क्योंकि अयोगियों को इस प्रकार के स्वप्न दृष्टिगोचर नहीं होते ॥४७||
विवेचन : स्वप्नशास्त्र में बताया है पूर्वकाल में जिसका अनुभव किया हो, ऐसे अनुभव जन्य, वातपित्त के विकार से उत्पन्न होने वाले विकारजन्य, रोगजन्य, कुधातुजन्य, मूल-प्रकृतिगत विकार से पैदा होने वाले स्वप्न सच्चे नहीं होते। अगर देवदर्शनादि के स्वप्नों को भी भूतों के विकार से पैदा होने वाले मानें, तो वह सफल नहीं होने चाहिये, लेकिन वे स्वप्न सफल होते हैं । इसलिये तुम्हारा कथन असंगत हैं, क्योंकि जो योगी नहीं है ऐसे लोगों को ऐसे सुन्दर स्वप्न आते ही नहीं। इष्टदेव, गुरु, धर्म की सेवाभक्ति करने वाले; सच्चारित्र की अप्रमत्तभाव से आराधना करने वाले; सौम्य प्रकृतिवन्त महात्माओं को, देव की कृपा से, जो स्वप्न दिखाई देते हैं, वे सच्चे होते हैं, शीघ्र फलदायी होते हैं । लेकिन जो योगी नहीं; देव, गुरु, धर्म पर जिन्हें कोई श्रद्धा नहीं; दान, दया, शील आदि जो सच्चारित्र की आराधना नहीं करते, जिन्हें महापुरुषों आप्तपुरुषों पर कोई विश्वास नहीं ऐसे