Book Title: Prachin Stavanavli 23 Parshwanath
Author(s): Hasmukhbhai Chudgar
Publisher: Hasmukhbhai Chudgar

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Page 54
________________ योगबिंदु पद से सूचित है योगशास्त्र को जानने वाले मध्यस्थ ज्ञाता । जो विद्वान सत्यगवेषक हैं; उनके लिये यह ग्रंथ उपादेय-आदरणीय है, चाहे वे किसी भी धर्म, सम्प्रदाय व पंथ को मानने वाले हों । श्री हरिभद्रसूरिजी के समय में जितने भिन्न-भिन्न योगशास्त्र उपलब्ध थे उन सब योगशास्त्रों का उन्होंने अध्ययन कर लिया था । ग्रंथकार को योग के सम्बन्ध में जो-जो निरूपण मिले उन सब का निरीक्षण करके, ग्रंथकार सूचित करते हैं कि प्रस्तुत योगबिंदु ग्रंथ, उन सब निरूपणों का स्थापक है - "सर्वेषां योगशास्त्राणाम्" । ___ संसार में मनुष्य दो प्रकार के मिलते हैं । एक तो एकदम हठाग्रही-कदाग्रही अर्थात् एकांतपक्षी – अपनी ही बातों को सत्य मानने वाला और दूसरों के विचारों की अवगणना करने वाला, तथा दूसरा तत्त्वग्राही तथा मध्यस्थवृत्तिवाला, तटस्थ होकर दूसरों के विचारों के सम्बन्ध में खुले मन से विचार करनेवाला । इन दूसरे, तटस्थ होकर मध्यस्थ भाव से विचार करने वालों के लिये, कि प्रस्तुत योगबिंदु ग्रंथ सांख्य योगशास्त्रों, बौद्ध योगशास्त्रों, पातंजल योगशास्त्र तथा अन्य कई उपलब्ध योगशास्त्रों का अर्थात् सभी योगशास्त्रों का अविरोध से स्थापक है । जो गुणग्राही और तटस्थवृत्ति के मनुष्य होते हैं, वे सभी प्रकार के तात्त्विक विचारों को सुनने और समझने के लिये तैयार रहते हैं । प्रस्तुत द्वितीय श्लोक में उन मध्यस्थ महानुभावों का स्मरण करके, निर्वाण प्रतिपादक सभी प्रकार के योगशास्त्रों के प्रति ग्रंथकार ने अपना सद्भाव अभिव्यक्त किया है। इस पद से ग्रंथकार की सर्वधर्म समभावना एवं गुणग्राहकदृष्टि, सत्यनिष्ठा, उदारता आदि गुणों के प्रति वाचक का ध्यान आकृष्ट होता है॥ १-२ ॥ मोक्षहेतुर्यतो योगो भिद्यते न ततः कचित् । साध्याभेदात् तथाभावे तूक्तिभेदो न कारणम् ॥३॥ अर्थ : 'योग' मोक्ष का हेतु है, इसलिये कहीं भी इसमें भेद नहीं है । साध्य का अभेद होने से साधन का भी अभेद होता है, अतः शब्द भेद होने पर भी अर्थ का भेद नहीं होता ॥३॥ विवेचन : "मोक्षेण योजनात् योगः" जो योगप्रक्रिया मोक्ष के साथ जोड़ दे वही योग है। इस अर्थ को लक्ष्य में रखकर, जब योग सम्बन्धी स्व और पर शास्त्रों का अध्ययन करते हैं तो कहीं भी पारमार्थिक भेद दिखाई नहीं देता । क्योंकि साध्य मोक्ष ही सभी योगों से सिद्ध करना है, और वह सभी का एक है, इसलिये कहीं पर भी जो अनुष्ठान, क्रिया, भाषा, शैली में भेद दिखाई देता है, वह केवल शब्दभेद है, अर्थभेद नहीं है। जैसे - जल, पानी, वारि, पय, अप इत्यादि शब्दभेद होने पर भी अभिधेय पेय पदार्थ जल में अन्तर नहीं हैं । जो धर्म-सम्प्रदाय एवं धर्मसम्प्रदाय प्रवर्तक आचार्य आदि 'निर्वाण' प्राप्ति को, जीवन का

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