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सदाचार का स्वरूप
लक्षण आदि
उचित करनी- कार्य आदि के बारे में
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तप का स्वरूप
मुक्ति के प्रति द्वेष का त्याग और प्रेम का पालन
मुक्ति के प्रति द्वेष किन में सम्भव है।
शुभ अध्यवसाय से उत्तम गुण प्राप्त होते हैं कर्ममल का नाश ही मुक्ति का उपाय है। कमल अनर्थ के लिये है
अंत:करण की शुद्धि बिना का चारित्र, न्याय से विचार करने पर, प्रशंसा योग्य नहीं है
मुक्ति के प्रति द्वेष का अभाव ही मोक्ष प्राप्ति का तात्विक हेतु है। पूर्वसेवा का विशेषता पूर्वक अधिकार
मुक्ति के अद्वेष में कितने गुण रहे हैं
भवाभिष्वंग और अनाभोग का स्वरूप
गरल अनुष्ठान से कुछ भी लाभ नहीं है।
समान दिखाई देते अनुष्ठानों का फल समान होता नहीं है विषादि पाँच प्रकार के अनुष्ठान के नाम
पहले दो अनुष्ठानों की व्याख्या
तीसरे अनुष्ठान का स्वरूप
तद्हेतु और अमृत अनुष्ठान का स्वरूप
चरम पुद्गलपरावर्त में देव - गुरु आदि की सेवा पहले से अलग प्रकार की होती है
अंतिम आवर्त में आत्मा की कैसी विशेष अवस्था होती है।
कर्ममल का स्वरूप
जीव को अनादि मुक्त मानने से कौनसे दोष प्राप्त होते हैं
जीव में रही हुई योग्यता
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