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दैव और पुरुषकार की तुल्यता किस प्रकार है गोचरादि की शुद्धि द्वारा योग की विचारणा किसलिये करनी योग की सिद्धि आगम प्रमाण से होती है योग तत्त्व के वचनों का विचार किसलिये करना कैसे पुरुष के वचनों में प्रवृत्ति करनी उपरोक्त से विरुद्ध प्रवृत्ति दोषसहित है प्रत्यक्ष प्रमाण और आगम प्रमाण से निश्चय होता है वचन का भेद बाधक होता है, यह शंका और उसका समाधान आगम के अनुसार योगमार्ग बताने का प्रारंभ योग मार्ग के भेद अन्य दर्शनकारों के मत से योग के नाम इन भेदों का भेदपूर्वक तात्त्विक सार सास्रव और निरास्रव भेद का स्वरूप योग के अंतर्गत भेद का विस्तार योग का माहात्म्य स्वप्न द्वारा पुनर्जन्म की सिद्धि स्वप्न भ्रांतिजनक नहीं हैं स्वप्न भूतविकार नहीं हैं इन्द्रियप्रत्यक्ष हो वही सत्य है, ऐसा नास्तिकों
और मीमांसकों का मत है। योगी देव-स्वर्ग आदि मानने वालों को आत्मा-मोक्ष को मानने के लिये कहते हैं योगियों के अतिरिक्त जीव भी गुरु के उपदेश से आत्मा आदि अरूपी पदार्थों को जान सकते हैं अनुमान प्रमाण आदि से भी वस्तु स्वरूप जाना जा सकता है योग से अन्य क्या फल प्राप्त होते हैं
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