Book Title: Prachin Stavanavli 23 Parshwanath
Author(s): Hasmukhbhai Chudgar
Publisher: Hasmukhbhai Chudgar

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Page 37
________________ विद्वदवरेण्य डॉ. श्री जितेन्द्रभाई शाह ने आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित योगबिन्दु का हिन्दी अनुवाद खूब शुद्ध एवं विद्वानों को ग्राह्य हो ऐसा संपूर्ण प्रकाशन तक का कठिन उत्तरदायित्व संभालकर हमें निश्चित बना दिया है। उनके द्वारा लिखित इस ग्रंथ की प्रस्तावना पढ़कर चित्त अत्यन्त प्रफुल्लित हो उठा जैसे सम्यग् दर्शन को मोक्ष का द्वार कहा है उसी तरह यह प्रस्तावना ग्रंथ का द्वार है ऐसी अनुभूति हुई । सागर जैसे ग्रंथ को प्रस्तावना रूपी गागर में भर कर प्रत्येक जिज्ञासु विद्यार्थी विद्वान् एवं पाठक के लिए प्रवेशद्वार का अद्भुत कार्य किया है । प्रस्तावना पढ़ते ही जिज्ञासु को इस योगबिन्दु को पढ़ने की उत्सुकता, उत्कंठा, जाग्रत होगी। प्रस्तुत ग्रंथ का कार्यभार स्वीकार करके डॉ. श्री जितेन्द्रभाई शाह ने हमारे उपर अनहद उपकार किया है। उन्होंने हमारा आभार मान कर अपनी निःस्वार्थ परोपकार परायणता, महानता, सौजन्यता, उदारता, गम्भीरता का परिचय दिया है। हमारे गुरु महाराज पू. मृगावतीश्री जी के अन्य-अन्य जिन कार्यों के लिए हम आये हैं । उन सभी की जवाबदारी पूरी सम्भाली है । आपके उपकारों का बदला हम चुका नहीं सकते; हम भी आप के ऋणी रहेगें । इस ग्रंथ के प्रकाशन में हमें श्री पुष्करराज सोलंकी, बालाजी गणोरकर एवं संस्थान के अन्य कर्मचारिओं का सहयोग मिला । उन सभी के सहयोग के लिए अत्यंत आभारी हैं । यह ग्रंथ योग का ग्रंथ है इसमें मोक्ष साधना की बात कही गई है। विद्वान एवं जिज्ञासुओं को प्रस्तुत अनुवाद से लाभ होगा। इस कार्य को करते हुए जो पुण्योपार्जन हुआ है उससे जिज्ञासुओं को लाभ हो और योग मार्ग में प्रगति करें यही भावना मन में सदा रहती है । अंत में हमारा पुण्य उनकी साधना में सहयोगी बने ऐसी भावना करते हैं । इस ग्रंथ का अनुवाद करने में जिनाज्ञा विरुद्ध, कुछ भी लिखा गया हो तो उसके लिए में मन-वचन-काया से क्षमा याचना करती हूँ - करबद्ध, नतमस्तक मिच्छामि दुक्कडम देती हूँ । १८.१२.२०१७ जैनभारती पू.मृगावतीश्रीजी महाराज की शिष्या साध्वी सुव्रताश्री

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