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[ २ ] मंगलाचरण ( मुनि विवेकसागरजी महाराजकी तरफ से ) मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दायो, जैन धर्मोऽस्तु मंगलं ॥१॥
मैं ( विवेकसागर ने ) ब्रह्मदेवकृत संस्कृत टीकाके पं० दौलतरामजी कृत हिन्दी अर्थका २ - ३ बार ध्यानपूर्वक स्वाध्याय किया, मुझे यह अनुवाद बहुत ही अच्छा लगा और मैंने सोचा कि यदि यह संस्कृत टीका रहित केवल अविकल भाषानुवाद सहित प्रकाशित कर निःशुल्क वितरण किया जा सके तो भव्य जीवोंका बड़ा कल्याण हो । निश्चयव्यवहार की जटिल समस्या सरल भाषा में सबके हृदयंगत हो और मोक्ष - मार्गमें हम सब उत्साहपूर्वक प्रवृत्ति करें, अतः सर्व प्रथम देवाधिदेव श्री १००८ श्री वीर भगवान्को व चार ज्ञानके धारी श्रुत केवली गणधर श्री गौतमस्वामी को एवं इस युग के अध्यातमवादियों के सर्वशिरोमणि आचार्य श्री १०८ श्री कुन्दकुन्द स्वामी आदि महर्षिको सिद्धभक्ति पूर्वक, त्रिधा नमोस्तु पूर्वक महा मंगल रूपमें स्मरण कर उन्हींके वचनरूप जिन धर्मको इस लोकमें तथा परलोक में ही महान हितकर समझ कर इस सत्कार्य में प्रेरित हो रहा हूं । इस समीचीन कृतिको लघु परमात्मप्रकाश के नामसे, प्रकाशित करने की प्रेरणा दे रहा हूं | यह मंगलरूप वचनोंसे स्थायी परमानंद देनेवाली आचार्योंकी देन हम सबका कल्याण करे । यदि संभव हो सका तो इन्हीं की दूसरी कृति योगसार व अन्य आर्षमार्गानुयायी आचार्यों की मूल कृति भी हिन्दी अनुवाद सहित इसी ग्रंथके साथ प्रकाशित करवा कर जिनवाणी का लाभ सर्व साधारण को हो सके ऐसी भावना करता हूं ।