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5 श्री परमात्मने नमः 5
श्रीमद्योगीन्दुदेव विरचित
-: लघुपरमात्मप्रकाश :
टीकाकार का मंगलाचरण
चिदानन्दैकरूपाय, जिनाय परमात्मने । परमात्मंप्रकाशाय, नित्यं सिद्धात्मने नमः ॥ दोहा -
चिदानंद चिद्रूपजो, निजपरमातम देव | सिद्धरूप सुविसुद्धजो, नमीं ताहि करि सेव ॥ १ ॥ परमातम निजवस्तु जो, गुण अनंतमय शुद्ध । ताहि प्रकाशन के निमित्त बंदू देव प्रबुद्ध ||२||
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अवतरणिका "चिदानंद" इत्यादि श्लोकका अर्थ-
श्री जिनेश्वरदेव शुद्ध परमात्मा, आनंदरूप चिदानन्द चिद्रूप है, उनके लि मेरा सदा काल नमस्कार होवे, किसलिये ? परमात्मा के स्वरूपके प्रकाशन के लिये कैसे हैं वे भगवान् ? शुद्ध परमात्म स्वरूपके प्रकाशक हैं, अर्थात् निज और पर सब स्वरूपको प्रकाशते हैं । फिर कैसे हैं "सिद्धात्मने" जिनका आत्मा कृतकृत्य है । सारां यह है कि नमस्कार करने योग्य परमात्मा ही है, इसलिये परमात्माको नमस्कार क परमात्म प्रकाश नामा ग्रंथिका व्याख्यान करता हूं ।