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वाग्देवी-मूर्ति अभिलेख
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६. सूर्य चन्द्र के रहते तक के लिये दिये । तथा पर्णशाला में धूप के निमित्त प्रतिदिन १ __कौडी सूर्य चन्द्र के रहते तक दी गई। ७. तथा मासवारक (?) के निमित्त प्रत्येक संक्रांति को दो वराह-मुद्रायें चन्द्रसूर्य के रहते तक
के लिये दी। ८. जब जब यह भूमि जिसके अधिकार में होती है तब तब उसी को उसका फल मिलता है।
श्री सोमनाथ के लिये ९. महाजन इंदा महिंदका ने उत्तम निवास भवन प्रदान किया। तैलिक थाइयाक ने उत्तम
निवास भवन प्रदान किया। १०. तथा वणिक सोढ़ाक ने उत्तम निवास स्थान प्रदान किया। तथा वणिक साइयाक ने ११. उत्तम निवास भवन प्रदान किया, तथा वणिक हरज व सोम ने अपने दो निवास स्थान
प्रदान किये। १२. तथा वणिक महल्लक ने उत्तम निवास स्थान प्रदान किया। तथा शंखों का व्यापार करने
वाले लक्ष्मीधर ने १३. उत्तम निवास प्रदान किया । श्री सोमनाथदेव के (मंदिर के आसपास की भूमि के)
प्रसार के पूर्व में मंदिर, पश्चिम में १४. ठक्कुर कुडणक का निवास स्थान, उत्तर में (प्रमुख) मार्ग, दक्षिण की ओर नदी १५. इस प्रकार चारों सीमाओं से निर्धारित सोमनाथदेव की भूमि का प्रसार है ।छ। मंगलं महाश्री।
(१५) भोजदेव-निर्मित वाग्देवी-मूर्ति अभिलेख
(संवत १०९१=१०३४ ईस्वी)
प्रस्तुत अभिलेख भोजदेव द्वारा निर्मित सरस्वती प्रतिमा की पादपीठ पर उत्कीर्ण है। इसका प्रथम उल्लेख के. एन. दीक्षित ने अंग्रेजी जर्नल रूपम, क्रमांक १७, जनवरी १९२४, पृष्ठ १-२ पर किया। वी. एन. रेऊ ने "भोजराज", १९३२, पृष्ठ ८४-८५ पादटिप्पणी में इसका उल्लेख किया। सी. बी. लेले ने परमार इंस्क्रिप्शनस इन धार स्टेट, १९४४, पृष्ठ ९५ पर उल्लेख किया। वी. एस. वाकणकर ने जनवरी १९७० में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में भोज सेमिनार में इस पर एक लेख पढ़ा । वर्तमान में प्रतिमा ब्रिटिश म्यूज़ियम, लन्दन में है।
पादपीठ के पत्थर का आकार ३०.४४ १०.१६ सें. मी. है । लेख ४ पंक्तियों का है। अक्षर सुन्दर ढंग से खुदे हैं, परन्तु कुछ टूट गये हैं। इस कारण पाठ में मतभेद उत्पन्न हो गये हैं । लिपि ११वीं सदी की नागरी है । भाषा संस्कृत है व गद्यपद्यमय है । इस में शार्दुलविक्रीडित छन्द में एक श्लोक है । शेष भाग गद्य में है। वर्णविन्यास की दृष्टि से श के स्थान पर स (सिवदेवेन) एवं र के बाद का व्यञ्जन दोहरा है (निर्ममे)। सभी स्थलों पर अनुस्वार का प्रयोग है ।
तिथि अन्त में संवत् १०९१ केवल अंकों में बगैर अन्य विवरण के है । यह १०३४ ईस्वी के बराबर है । प्रमुख ध्येय नरेश भोज द्वारा सरस्वती की प्रतिमा की स्थापना करना है। उस प्रतिमा का शिल्पकार सूत्रधार साहिर का पुत्र मनथल था । अभिलेख शिवदेव के द्वारा उत्कीर्ण किया गया था ।
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