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परमार अभिलेख
श्लोक क्र. ३-५ में दानकर्ता नरेश के पूर्वाधिकारी शासकों के उल्लेख हैं। श्लोक ३ में वाक्पति का नाम साफ पढ़ने में आता है। अगले श्लोक में संभवतः भोजदेव व उदयादित्य के उल्लेख हैं। श्लोक ५ में नरवर्मन का शासनकर्ता के रूप में उल्लेख है। श्लोक क्र. ६-८ में दानकर्ता अधिकारी श्री विक्रम की वंशावली है। श्लोक ९-१४ में उसके द्वारा निर्मित तालाब का गुणगान है। यह तालाब संभवतः वही है जिसके किनारे से प्रस्तुत प्रस्तर खण्ड प्राप्त हुआ है।
श्लोक . १५ महत्वपूर्ण है। इसमें लिखा है कि सरोवर के निर्माण में श्री विक्रम ने अपने बाहूबल से प्राप्त २५०० राजमुद्रित मुद्रायें (टंक) व्यय की थी। मुद्राओं की यह संख्या शब्दों व अंकों में दी हुई है। संभव है श्री विक्रम ने यह धन नरेश नरवर्मन के अधीन सेनापति के रूप में किसी युद्ध में सफल होने पर प्राप्त किया हो, परन्तु इसका विवरण नहीं है।
अभिलेख का महत्व इस तथ्य में है कि इसके माध्यम से नरवर्मन के शासनकाल की प्रारम्भिक तिथि अभी तक ज्ञात तिथि से दस वर्ष पूर्व निर्धारित करने में सहायता प्राप्त होती है। इस में किसी भौगोलिक स्थान का उल्लेख नहीं है।
(मूलपाठ) (श्लोक १ शार्दूलविक्रीडित, २ स्रग्धरा, ३-४ इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा या उपजाति, ५, ६, ९
उपजाति, ७, ८ इन्द्रवज्रा, १० से १५ अनुष्टुभ) १. सिद्धि [1] ओं [1]
मध्ये [सो (शो)]भित [दुग्ध]सिंधु वि- - - [पारो]पमं संमूर्च्छद्धन घोर घोष घटनी (ना)व्या[घू] -
_णिता [सां (शां) तरं (रम्)।] --क~~-~-क---कृष्णस्य पाणौ स्थितं युष्माकं स (श)त[भद्र]जालमिव
[स्या]त्पांचजन्यं मुदे।।[१॥] यास्मिना (ना) पूर्यमाणे~~~~~करं -~--~-- [त्रा]साद प्राप्तरेवं प्रति]र[थ]
तुरगा नष्टमार्गा[:] प्रयान्ति। व (ब) ह्या व (ब)ह्मांड खं[ड]-~~~~~-स्येति नारायणास्यं तहः पाया
त्सनादं वदनविहि[तः] पांचजन्यो मुरारे[] ||[२] ---ऽस्मिन् परमार वंसे (शे) --~- भारि रिहा
भवच्च। श्रीवा[प] तिर्वदन -~----~--~~-~-- ॥[३।।] अजायत - ~~ नृप -~
रागसंटि (?) संघट्ट - रणस्य । ----------------- -~- दया]र्कः ।। [४] श्रीमान्ज (ज)यी -~
जाज्जितराजल -तदंगजे श्री नरवर्म नाम्नि । पृथ्वीं स[दा] सा (शा) सति सु (शु)[ख]धाम्नि वक्तुं न स (श) क्ता[:] कवयो [शु]णे
न (गुणानाम् ? ) ॥[५॥] .
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