Book Title: Parmaras Abhilekh
Author(s): Amarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 320
________________ उदयपुर अभिलेख (६८) उदयपुर का जयसिंह द्वितीय का उदयेश्वर मंदिर अभिलेख (अपूर्ण) ( संवत् १३११ = - १२५५ ई.) प्रस्तुत अभिलेख भिलसा जिले में उदयपुर में उदयेश्वर मंदिर की पूर्वी दीवार में लगे एक प्रस्तरखण्ड पर उत्कीर्ण है। इसके उल्लेख ई. ऐं. भाग १८, पृष्ठ ३४१ भाग २०, पृष्ठ ८४ भण्डारकर की उत्तरी अभिलेखों की सूचि क्र. ५५०; ए. रि. आ. डि. ग. सं. १९८०-८८; ग. रा. अभि.द्वि., क्र. ११७ पर हैं। अभिलेख १२ पंक्तियों का है, परन्तु अत्यन्त क्षतिग्रस्त होने से इसका मूल नहीं दिया जा रहा है । तिथियुक्त भाग इस प्रकार है -- "संवत् १३११ वर्षे माघवदि १२ सुक्रे" । यह शुक्रवार ८ जनवरी १२५५ ई. के बराबर है। अन्य विवरण उपलब्ध नहीं है । (६९) राहतगढ़ का जयसिंह - जयवर्मदेव द्वितीय का प्रस्तर अभिलेख ( संवत् १३१२ = १२५६ ई.) २७१ प्रस्तुत अभिलेख कालिमायुक्त लाल प्रस्तरखण्ड पर उत्कीर्ण है जो सागर जिले में राहतगढ़ दुर्ग के पास १८७० ई. में कनिंघम को मिला था। इसके उल्लेख आ. स. रि., १६७४-७५ व १८७६–७७, भाग १०, पृष्ठ ३०-३१; इं. ऐ., भाग २०, पृष्ठ ८४; इं. सी. पी. एण्ड बरार, १९१६ पृष्ठ ४४-४५; कीलहार्न की उत्तरी अभिलेखों की सूचि क्र. २२३ पर है । प्रस्तरखण्ड वर्तमान में पुरातत्व विभाग, सागर विश्वविद्यालय में सुरक्षित है । अभिलेख का आकार ९१x६६ सें. मी. है। इसमें १४ पंक्तियां हैं। परन्तु सभी अत्यन्त क्षतिग्रस्त हैं। शुरू की केवल ५ पंक्तियाँ ही कुछ ठीक हैं। अक्षरों की बनावट १३वीं सदी की नागरी है। अक्षर १३ से २ सें. मी. लम्बे हैं, एवं लापरवाही से खोदे गये हैं। भाषा संस्कृत है। पढ़ा गया पाठ गद्य में है । व्याकरण के वर्ण विन्यास की दृष्टि से कुछ भी विचारणीय नहीं है । तिथि प्रारम्भ में संवत् १३१२ भाद्रपद शुदि ७ सोमवार है जो सोमवार २८ अगस्त, १२५६ ई. के बराबर है। इसका प्रमुख ध्येय किसी राजकीय आज्ञा को निस्सृत करना है जिसका विवरण स्पष्ट नहीं है । अभिलेख यद्यपि अपूर्ण है, परन्तु महत्त्वपूर्ण है। यह धार नरेश जयसिंह जयवर्मदेव द्वितीय के शासनकाल का है। नरेश का नाम, जिसके कुछ अक्षर पंक्ति २ के अन्त में हैं व शेष पंक्ति ३ में चालू हैं, कुछ शंकास्पद बन गया है। कनिंघम ने इसको जयवर्मदेव पढ़ा है जबकि हार्न जयसिंहदेव पढ़ते हैं । परन्तु नाम का अन्त वर्मदेव अथवा सिंहदेव होने से कोई अन्तर इसलिए नहीं पड़ता कि ये दोनों एक ही नरेश के दो नामान्त हैं । जयसिंहदेव अपरनाम जयवर्मदेव नरेश देवपालदेव का दूसरा पुत्र एवं जयतुगिदेव का छोटा भाई था । जयतुगिदेव के शासनकाल की दो तिथियाँ साहित्यिक आधारों से ज्ञात हैं । आशाधर ने सागर धर्मामृत ग्रन्थ विक्रम संवत् १२९६ तदनुसार १२३९ ई. में एवं अंगार धर्मामृत ग्रन्थ विक्रम संवत् १३०० तदनुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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