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उदयपुर अभिलेख
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... (७७) उदयपुर का जर्यासहदेव तृतीय कालीन मंदिर स्तम्भ अभिलेख
(संवत् १३६६=१३१० ई.)
प्रस्तुत अभिवख, विदिशा जिले में उदयपुर के विख्यात शिव मंदिर के पूर्वी बरामदे में जाने के लिए सीढ़ियों के प्रस्तर स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। इसका उल्लेख इं. ऐं. भाग २०, पृष्ठ ८४ पर किया गया जहां केवल प्रथम चार पंक्तियों का पाठ है।
अभिलेख नौ पंक्तियों का है, परन्तु जर्जर स्थिति में है। इसका आकार ३२४३१ सें. मी. है। उत्कीर्णकर्ता ने अपना काम बहुत लापरवाही से किया है। यहां तक कि अभिलेख खोदने से पूर्व पत्थर की सतह को भी ठीक से घिस कर समतल नहीं किया है। अभिलेख के अक्षरों की बनावट तत्कालीन नागरी लिपि है। अक्षर कुछ टेढ़े खुदे हैं जिनका आकार प्रायः २ सें. मी. है। भाषा संस्कृत है एवं गद्यमय है। वर्णविन्यास की दृष्टि से कोई विशेषता नहीं है। पंक्ति ४ में नरेश के नाम में ह के स्थान पर घ का प्रयोग है। तिथि प्रारम्भ में संवत् १३६६ श्रावण वदि १२ शुक्रवार है, जो शुक्रवार २४ जुलाई, १३१० ई. के बराबर है।
अभिलेख महाराजाधिराज जयसिंहदेव तुतीय के शासन काल से संबद्ध है। इसका प्रमुख ध्येय कुछ दानों का उल्लेख करना है जिनका विवरण भग्न हो गया है । पंक्ति २ से आगे में उदयपुर में नरेश जयसिंहदेव के शासन करने का उल्लेख है जिसके लिए पूर्ण राजकीय उपाधियां "समस्त अधीन राजाओं (से पूजित) महाराजाधिराज' का प्रयोग है। यहां जयसिंहदेव के वंश का उल्लेख नहीं है। परन्त अभिलेख के प्राप्ति स्थान एवं नरेश की राजकीय उपाधि, जो इसी स्थान से प्राप्त अन्य अभिलेखों में भी प्राप्त होती है, के आधार पर अनुमानतः कहा जा सकता है कि वह परमार वंशीय नरेश ही रहा होगा। इतना होने पर भी प्रस्तुत जयसिंहदेव का तादात्म्य जयसिंह-जयवर्मन् द्वितीय से नहीं किया जा सकता जिसके अभिलेख १२५५ ई. एवं १२७४ ई. के मध्य के प्राप्त होते हैं। प्रस्तुत अभिलेख इस तिथि से ३५ वर्ष बाद का है। हमें अन्य साक्ष्यों से विदित होता है कि जयसिंह-जयवर्मन् द्वितीय की मृत्यु १२७४ ई. के तुरन्त बाद हो गई थी। उसके बाद अर्जुनवर्मन् द्वितीय व भोज द्वितीय उत्तराधिकारी हुए। परमार वंश का अन्तिम नरेश महलकदेव १३०५ ईस्वी में देहली सुल्तान अलाऊद्दीन खिलजी के विरुद्ध युद्ध में मारा गया था (कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया, भाग ३, पृष्ठ ९३)।
प्रस्तुत अभिलेख उपरोक्त घटना से ६ वर्ष पश्चात् निस्सृत किया गया था। इस प्रकार यह संभावना हो सकती है कि महलकदेव की मृत्यु के उपरान्त प्रस्तुत अभिलेख का जयसिंहदेव, जिसको सुविधा की दृष्टि से जयसिंह तृतीय निरूपित किया जा सकता है, उदयपुर क्षेत्र में शासन करने लग गया होगा। वास्तव में उस समय उदयपुर क्षेत्र के आसपास इस नाम के किसी अन्य नरेश के अस्तित्व की कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। अतः भावी साक्ष्य के प्राप्त होने तक इसको परमार वंश से संबद्ध करना युक्तियुक्त है।
___ अभिलेख में उल्लिखित राजकीय उपाधियों के आधार पर जयसिंह तृतीय को उदयपुर क्षेत्र में स्वतंत्र शासक माना जा सकता है, परन्तु अधिक संभावना यह है कि वह मुसलिम सुल्तान की अनुमति से वहां पर उसके अधीन राज्य कर रहा होगा।
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