Book Title: Parmaras Abhilekh
Author(s): Amarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 426
________________ ३७७ शुद्धि पत्र पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध १३ १०० १०१ १०१ २९ १०४ १०५ १०५ १०६ १०६ १५-१६ अंतिम १०७ १०८ ११७ ११८ १२५ mar १४४ पंक्त पंक्ति अभिलख अभिलेख प्रवह प्रवाह आश्रुओं अश्रुओं कीतिरुपि कीर्तिरूपी महाबलि महाबली विकृतरुप विकृतरूप निरुपित निरूपित अत्याधिक अत्यधिक शत्रुरुपी शत्रुरूपी धूली धूलि पादानुद्यात पादानुध्यात उदयादिता उदयादित्य दशरुपावलोक दशरूपकावलोक किंवदन्ति किंवदन्ती शुद्रक शूद्रक नरर्मन नरवर्मन् उपधमावीय उपध्मानीय वाक्चातूर्य वाक्चातुर्य यक्तमधर युक्त मधुर जोड़ें:-उसके मणिजडित पादपीठ के आस पास की भूमि, इसके सामने प्रणत नरेशों के मस्तकों के मुकुटों से टूटे सुन्दर माणिक्यों से, दलित हो गई थी। धूली धूलि विद्विन्न विच्छिन्न सिद्धानांगनायें सिद्धाङ्गनाएँ वडवाग्नि वाडवाग्नि पश्चिम की पश्चिम के थकान की थकान को बोछार बौछार धूली धूलि बाहूबल बाहुबल विजमंदिर विजामंदिर अपनी अपने २७ १४६ १५८ १६५ १५ अंतिम श्लोक १६ १६७ १६७ १६७ १६८ १६९ १६९ ต * * * * * * १७२ १७२ १७८ १८० * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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