Book Title: Parmaras Abhilekh
Author(s): Amarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 389
________________ ३४० परमार अभिलेख विरुद्ध अभियान में भाग लिया था। इसी पंक्ति में आगे नवसाह का उल्लेख है जो संभवतः नवसाहसांक का प्रथमार्द्ध है। यह परमार नरेश सिधुल या सिंधुराज का उपनाम था। यहां इस उल्लेख का प्रयोजन अज्ञात है। पंक्ति ४-६ में विश्वामित्र एवं वसिष्ठ की धेनु का टूटा फूटा विवरण है। पंक्ति ७ में वैरिसिंह नाम पढने में आता है जो परमार राजवंशीय शृंखला में प्रारम्भिक नरेश था। परन्तु यह उल्लेख यहां क्यों है, सो अनिश्चित् है। आगे चेदिनाथ का उल्लेख है। यह चेदि नरेश गांगेय विक्रमादित्य हो सकता है, जिसको भोजदेव ने युद्ध में हराया था। इसका संदर्भ भी अज्ञात है। पंक्ति ८ में श्री हर्षदेव का उल्लेख है। यह परमार नरेश सीयक द्वितीय का उपनाम था। इसका संदर्भ भी अज्ञात है। आगे का अभिलेख भग्न हो गया है। यह कहना संभव नहीं है कि भग्न भाग कितना रहा होगा। अभिलेख में न तो कोई तिथि है एवं न ही यह ज्ञात करने का साधन है कि इसका प्रयोजन क्या था। इसमें किसी भौगोलिक नाम का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। उपरोक्त विवरण के आधार पर वर्तमान स्थिति में अभिलेख का महत्व उजागर करने में कठिनाई है। (मूलपाठ) १. शिखाजनितकज्जल- . . . वुद्धा ।। दृष्ट्वा प्रफुल्ल नयनोत्पलं या २. त्यवं पूर्वश्चिरम् ।। मौलींदुःकेतकीनाकुलनलिक तटी लक्ष्मनेत्रं ३. . . . . नलस्तस्याप्याहवमल्लदेव नृपतेंदोर्दण्ड . . . . दूहरः ।। तेन श्री नवसाह ४. . . . स दो विश्वामित्रनृप . . . षा वचस्वतीः ।। अथ ५. सकलमहान्तां वशिष्ठस्य धेनु . . . स्व सुखरकरान्मुक्त पुण्याबकी ६. त्यद्भुतं . . . . परस्तेजस्विना न ग्रहम् ।। तदुपदुज्ञ ७. धरामडल ।। वैरिसिहः . . . . . . . . न्मधि चेदिनाथे ग्लपितगरिमणिक्षा . . ८. ज्वलित भूवलयो बभूव ।। श्रीहर्षदेव इति विश्रुत कीर्तिरूच्चैरु . . . . ९. असौ दण्डनिपातेन उद्यानकलशं तथा . . . . १०. कार ।। सह भवति . . . (अनुवाद) १. ज्वाला से उत्पन्न काजल . . . . जान कर । विकसित नयन कमल को देखकर . . . २. . . . . . । शंकर केवडा नेवला नाली तट चिन्हनेत्र (?) ३. नल उसका भी आहवमल्लदेव राज के भुजदण्ड . . . . असह्य । उसने श्री नवसाह ४. . . . . भुजा विश्वामित्र नरेश . . . . वाणियुक्त । अब ५. सब में श्रेष्ठ वसिष्ठ की धेनु . . . अपने देवश्रेष्ट के हाथ से मुक्त पुण्यपंक्ति ६. अतिविचित्र . . . . श्रेष्ट तेजस्वी के द्वारा ग्रहण नहीं। उसके समीप ७. धरामण्डल पर। वैरिसिंह . . . . . । . . . . चेदिनाथ जिसकी गरिमा म्लान हो चुकी है. . . ८. भूमण्डल को जिसने प्रज्वलित कर दिया है ऐसा हुआ। श्री हर्ष देव ऐसा विख्यात कीर्तिवाला उन्नत ९. यह दण्ड के गिराने से उद्यान के कलश को उस प्रकार . . . . १०. . . . . । साथ होता है. . . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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