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पान्धाता अभिलेख
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कल्पान्त के तुल्य महायुद्धों के होने पर जिसके तीखे बाणों द्वारा कितने अत्यन्त उच्च नरेश शक्तिशाली सेनाओं सहित उन्मूलित नहीं किये गये ? ( महाप्रलय काल में वायु द्वारा कितने महापर्वत नहीं उखाड़े गये) ॥८।। ___ उससे नरवर्मन् नरेश हुआ जिसने अपने शत्रुओं के मर्मस्थल छिन्न कर दिये । बुद्धिमान जो धर्म के उद्धार करने में व राजाओं के लिये सीमा स्वरूप था ॥९॥
प्रतिदिन प्रातःकाल स्वयं ब्राह्मणों के लिये ग्रामपद देने से उसने एक पांव वाले धर्म को अनेक पांव प्रदान कर दिये ॥१०।।
उसका पुत्र यशोवर्मन् हुआ जो क्षत्रियों के मुकुटरूप था। उसका पुत्र अजयवर्मन् था जो विजय व लक्ष्मी के लिये विख्यात था ॥११॥
उसका पुत्र विध्यवर्मन् था जिसकी उत्पत्ति द्वारा (वंश) धन्य हुआ जो वीर शिरोमणि था और गुर्जर (नरेश) को हराने में उस महाभुज ने (शक्ति) लगाई ॥१२॥ __रणकुशल जिसका खङ्ग मानो तीनों लोकों की रक्षा करने के लिये ही धारा नगरी के उद्धार करने के साथ ही त्रिधारता को धारण कर रहा है ॥१३॥
उसी के गुणधर्मवाला इन्द्र के समान शोभायुक्त पुत्र सुभटवर्मन् भूतल पर धर्म में आरूढ़ हुआ ॥१४॥
सूर्य की कांति वाले दिग्विजयी जिसका प्रताप जलते हुए गुर्जर नगर में दावानल के बहाने से आज भी गर्जना कर रहा है ॥१५।।
(उसके) स्वर्गलोक को जाने पर उसका पुत्र अर्जुन नरेश आज भी पृथ्वीमंडल को अपने बाहू पर कंकण के समान धारण कर रहा है ।।१६।। __ बाललीला के समान युद्ध में जैनसिंह (जयसिंह) के प्लायन करने पर जिसका यश दिक्पालों के हास्य के बहाने से दिशाओं में फैल रहा है ।।१७।। __ साहित्य एवं गायन-विद्या के सर्वस्व निधि जिसने मानो सरस्वती देवी का पुस्तक व वीणा का भार ही उतार लिया हो ॥१८॥
तीन प्रकार के वीर जिसने अपनी कीर्ति तीन प्रकार से विकसित की, जगत को तीन प्रकार से पवित्र करने में उसके अतिरिक्त अन्य कौन ॥१९।। ___ उसके पश्चात् अद्भुत त्यागशील एवं शृंगारी वह याचकों के दुर्भाग्य से एवं स्वर्ग-रमणियों के पुण्य से स्वर्गलोक को गया ॥२०॥ ___ उसके पश्चात् परमार वंश के चन्द्र हरिश्चन्द्र का पुत्र प्रतापवान देवपाल मालव भमि पर शासन करता है ॥२१॥
(द्वितीय ताम्रपत्र-अग्रभाग) जब वह नरेश देवपालदेव आनन्दपूर्वक इन्द्र के निवास को चला गया, तो उसका पुन बुद्धिमान जयतुगिदेव मालव-खण्ड का नरेश हुआ जो शत्रुओं के लिये काल है, अपने गुणों द्वारा प्रजा का सदा मनोरंजन करता है और अपने उदार चरित्रों से बालनारायण के समान इस पृथ्वी पर शासन करता है ॥२२॥
राज्यसुख भोगकर उसे स्वर्ग प्राप्त करने पर उसका छोटा भाई नरेश जयवर्मन् पृथ्वी पर शासन करता है ॥२३॥ २३. वह ही नरनायक सब प्रकार से उदयशील होकर महुअड़ पथक में वड़ौद ग्राम में (आये)
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